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बुढ़वा महादेवा मंदिर Photograph: (FB)
सावन का पवित्र महीना शुरू हो गया है, और भगवान शिव की भक्ति में डूबे श्रद्धालु देशभर के प्रसिद्ध मंदिरों की ओर रुख करने लगे हैं. लेकिन झारखंड के हजारीबाग जिले की एक पहाड़ी पर स्थित एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं बुढ़वा महादेवा मंदिर.
क्या है बुढ़ा महादेव की कहानी?
यह मंदिर हजारीबाग से लगभग 30 किलोमीटर दूर महुदी पहाड़ी पर स्थित है और माना जाता है कि यह करीब 400 साल पुराना है. सावन के महीने में यहां लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में शिवभक्ति की परंपरा 17वीं शताब्दी में कर्णपूरा राज्य के राजा दलेल सिंह ने शुरू की थी. उस समय कर्णपूरा राज्य की राजधानी बादाम बड़कागांव में हुआ करती थी.
बाबी की भक्ति में लीन रहते थे राजा
राजा दलेल सिंह शिवभक्ति में लीन रहते थे. कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं भगवान शिव के लिए कई भक्ति गीतों की रचना की थी. उनकी अगुवाई में ही इस क्षेत्र में एक किला और तालाब का निर्माण भी हुआ, जिसे आज रानीपोखर के नाम से जाना जाता है.
क्यों अनोखा है ये मंदिर?
बुढ़वा महादेवा मंदिर सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि इसका भूगोल भी काफी अद्भुत है. महुदी पहाड़ी की चढ़ाई के दौरान रास्ते के दोनों ओर शेषनाग जैसी आकृतियों वाली चट्टानें देखने को मिलती हैं, जो इसे और भी रहस्यमय बनाती हैं.
इस पहाड़ी पर कुल चार प्रमुख गुफाएं हैं. छगरी गुफा, गोदरी गुफा, द्वारपाल गुफा और मड़ावा गुफा. इन गुफाओं के भीतर शिवलिंग रूप में बाबा भोलेनाथ विराजमान हैं. यहां के दर्शन और प्राकृतिक वातावरण श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं.
सावन में लगता है मेला
हर साल सावन में यहां श्रावण मेला भी लगता है, जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु परिवार समेत पहुंचते हैं. यह मंदिर न केवल झारखंड की आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि यहां की परंपरा और लोककथाओं को भी जीवित रखता है. सावन के इस पावन महीने में अगर आप किसी ऐसे शिवधाम की तलाश में हैं, जो शांत, प्राकृतिक और ऐतिहासिक हो तो बुढ़वा महादेवा मंदिर आपकी आस्था का एक नया केंद्र बन सकता है.