इस इस्लामिक देश में मुसलमानों के ऊपर अत्याचार, लगाई कई सारी पांबदियां

अज़रबैजान में इस साल आशूरा का दिन कई शिया मुस्लिमों के लिए दुख और हैरानी भरा रहा. पहली बार सरकार की तरफ से इतने सख़्त नियम लगाए गए कि लोगों को अपने धार्मिक तरीके से मातम मनाने की भी इजाज़त नहीं दी गई

अज़रबैजान में इस साल आशूरा का दिन कई शिया मुस्लिमों के लिए दुख और हैरानी भरा रहा. पहली बार सरकार की तरफ से इतने सख़्त नियम लगाए गए कि लोगों को अपने धार्मिक तरीके से मातम मनाने की भी इजाज़त नहीं दी गई

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Ravi Prashant
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Ashura in Azerbaijan

मुस्लिम के ऊपर अत्याचार Photograph: (Freepik)

अज़रबैजान में इस साल आशूरा का दिन कई शिया मुस्लिमों के लिए दुख और हैरानी भरा रहा. पहली बार सरकार की तरफ से इतने सख्त नियम लगाए गए कि लोगों को अपने धार्मिक तरीके से मातम मनाने की भी इजाजत नहीं दी गई. देश के कई शहरों की मस्जिदों में मर्सिया पढ़ने, सीना पीटने और रोने जैसी परंपरागत शिया रस्मों पर रोक लगा दी गई. सोशल मीडिया पर लोगों ने बताया कि पुलिस ने मस्जिदों में साफ कहा कि “सरकार रोने की इजाजत नहीं देती.”

क्यों लगाई जाती हैं पाबंदियां

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आशूरा, इस्लामिक कैलेंडर के मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. इस दिन को शिया मुसलमान पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाते हैं. कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को यजीद की सेना ने शहीद कर दिया था. इसी घटना को शिया समुदाय बहुत ही दुख और श्रद्धा के साथ याद करता है.

पुलिस को मिले शख्त निर्देश

अजरबैजान में बाकू, नरदरान, लंकरान, मसाली और गंजा जैसे शहरों में हर साल आशूरा पर लोग मस्जिदों में इकट्ठा होकर मर्सिया पढ़ते हैं, सीना पीटते हैं और रोते हैं, पर इस बार इन सब पर रोक लगा दी गई. बकू की एजेरबे मस्जिद में मौजूद पत्रकार अर्जू अब्दुल्ला गुलजमान ने बताया कि उन्हें मर्सिया पढ़ने से मना कर दिया गया और पुलिस ने कहा कि आज मातम की इजाजत नहीं है, क्योंकि आशूरा “कल थी” जबकि इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, आशूरा असल में 6 जुलाई को ही थी. इस फैसले से शिया समुदाय में नाराजगी फैल गई है. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या अब धार्मिक भावनाओं को भी सरकार कंट्रोल करेगी? कई लोगों का मानना है कि इस तरह की पाबंदियां समाज में और तनाव पैदा कर सकती हैं.

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