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कुष्ठहर नाला Photograph: (SOCIAL MEDIA)
kathal Nala: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक अनोखा नाला है, जिसे कुष्ठहर, कष्टहर या कटहल नाले के नाम से जाना जाता है. इस नाले की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यह छह महीने तक एक दिशा में बहता है और फिर अगले छह महीने विपरीत दिशा में प्रवाहित होता है. यही कारण है कि यह नाला हमेशा से शोधकर्ताओं और प्रशासनिक परीक्षाओं में रुचि रखने वालों के लिए चर्चा का विषय बना रहा है.
क्या है नाले का इतिहास?
बता दें कि यह नाला सुरहा ताल और गंगा नदी से जुड़ा हुआ है. ऐतिहासिक रूप से इसका नाम “कुष्ठहर” इसलिए पड़ा क्योंकि माना जाता है कि राजा सूरथ को कुष्ठ रोग था, और इस नाले के जल में स्नान करने से उन्हें इस बीमारी से मुक्ति मिल गई थी. इसके बाद से यह नाला धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाने लगा.
बाढ़ नियंत्रण में निभाता है अहम भूमिका
इस नाले की दूसरी विशेषता यह है कि यह बलिया जिले को बाढ़ से बचाने में सहायक होता है. जब गंगा नदी में जल स्तर बढ़ता है, तो यह नाला पानी को सुरहा ताल में पहुंचा देता है. वहीं, जब सुरहा ताल में पानी अधिक हो जाता है, तो यह इसे गंगा नदी में प्रवाहित कर देता है. इस कारण इसे “कष्टहर” नाला भी कहा जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से जलभराव की समस्या से राहत दिलाने में मदद करता है.
प्रदूषण से अस्तित्व पर संकट
एक समय में ऐतिहासिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण यह नाला अब प्रदूषण का शिकार हो गया है. स्थानीय लोग इसमें कूड़ा-कचरा डालने लगे हैं, जिससे इसका जल पूरी तरह दूषित हो चुका है. धीरे-धीरे इसकी स्वच्छता और प्रभावकारिता खत्म होती जा रही है. अगर जल्द ही इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह नाला इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाएगा.
सरकार से संरक्षण की उम्मीद
इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने की जरूरत है. इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है, जिससे यह आर्थिक रूप से भी लाभदायक साबित हो सकता है. स्थानीय प्रशासन और नागरिकों को भी इसकी सफाई और संरक्षण के लिए आगे आना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस रहस्यमयी नाले के अनोखे गुणों से परिचित हो सकें.
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