Gate of Hell : जिंदा रहते हुए देख सकते हैं नर्क, वैज्ञानिकों ने खोज निकाला रास्ता!

तुर्कमेनिस्तान के काराकोरम रेगिस्तान में स्थित 'नर्क का द्वार' (Gate of Hell) के रूप में जाना जाने वाला यह प्राकृतिक अजूबा एक बार फिर चर्चा में है.

तुर्कमेनिस्तान के काराकोरम रेगिस्तान में स्थित 'नर्क का द्वार' (Gate of Hell) के रूप में जाना जाने वाला यह प्राकृतिक अजूबा एक बार फिर चर्चा में है.

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Ravi Prashant
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Gate of Hell

Gate of Hell

तुर्कमेनिस्तान के काराकोरम रेगिस्तान में स्थित 'नर्क का द्वार' (Gate of Hell) के रूप में जाना जाने वाला यह प्राकृतिक अजूबा एक बार फिर चर्चा में है. वर्षों से इस जगह की आग निरंतर धधकती रही है और यह विश्वभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

कैसे शुरू हुई थी यह आग?

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1971 में सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक गैस के भंडार का पता लगाने के दौरान गलती से इस गड्ढे को ड्रिल कर दिया था. ड्रिलिंग के दौरान ज़मीन धंस गई और एक बड़ा गड्ढा बन गया, जिससे बड़ी मात्रा में मीथेन गैस का रिसाव होने लगा. इस गैस से पर्यावरण और जनजीवन को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने इस गैस को जलाने का फैसला किया, उम्मीद थी कि यह आग कुछ हफ्तों में बुझ जाएगी. लेकिन इस आग को बुझने में अब तक 50 साल से अधिक का समय बीत चुका है और यह लगातार जल रही है.

पर्यटकों का अनुभव

हालांकि 'नर्क का द्वार' अब भी जल रहा है, लेकिन हाल ही में इस स्थान पर जाने वाले कुछ पर्यटकों का दावा है कि अब इसकी आग पहले की तुलना में कम होती दिख रही है। कुछ का कहना है कि यह आग धीरे-धीरे बुझने की कगार पर है. तुर्कमेनिस्तान के अधिकारियों ने भी इस पर ध्यान देना शुरू किया है और संभावना है कि इस स्थान को लेकर नई योजनाएं बनाई जा रही हैं.

पर्यावरणीय चिंताएं

विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्राकृतिक गैस का लगातार जलना पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो सकता है. काराकोरम रेगिस्तान में स्थित इस गड्ढे के आसपास का तापमान बेहद उच्च स्तर पर है, जिससे आसपास का पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है.

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पर्यटन और भविष्य

'नर्क का द्वार' तुर्कमेनिस्तान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है और हर साल हजारों पर्यटक इसे देखने आते हैं. अगर आग वाकई कम हो रही है, तो यह न केवल पर्यावरण के लिए राहत की बात होगी बल्कि इससे जुड़े रहस्य और रोमांच भी खत्म हो सकते हैं. वहीं, कुछ लोग इसे एक ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित रखने के पक्षधर हैं.

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