पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल का तमगा देकर एक बड़ा कदम उठाया है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह फैसला उनकी मजबूरी थी या फिर उन्होंने सेना के दबाव में यह कदम उठाया. पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि कोई भी प्रधानमंत्री अब तक कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. ऐसे में शहबाज शरीफ की मुश्किलें और बढ़ गई हैं और फिर से तख्तापलट की आशंका जताई जा रही है.
पाकिस्तान में तख्तापलट का इतिहास
पाकिस्तान की राजनीति पर हमेशा से सेना हावी रही है.
1958 में फील्ड मार्शल अयूब खान ने राष्ट्रपति स्कंदर मिर्जा को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया.
1977 में जनरल जियाउल हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार गिरा दी.
1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट किया और खुद राष्ट्रपति बन बैठे.
अब चर्चाएं तेज हैं कि फील्ड मार्शल आसिम मुनीर भी वही रास्ता अपना सकते हैं.
आसिम मुनीर की चालें
आसिम मुनीर पर आरोप है कि वे हमेशा भारत के खिलाफ जंग की बातें करते हैं. यहां तक कि पाकिस्तान की करारी हार के बाद भी वे परमाणु हमले की धमकी देते रहते हैं. आलोचक कहते हैं कि जब उनकी कुर्सी डगमगाने लगती है तो वे मजहबी कार्ड खेलकर जनता और सेना को भड़काते हैं.
तख्तापलट की प्लानिंग
रिपोर्ट्स के अनुसार, मुनीर ने तख्तापलट की योजना तीन चरणों में तैयार की है:
1. पहला चरण- जब वे अमेरिका के दौरे पर वाइट हाउस में डिनर पर गए. वहीं से उन्होंने सत्ता पर कब्जे का खाका तैयार किया.
2. दूसरा चरण- 1 सितंबर को चीन के तियांजिन में हुई एससीओ समिट में उन्होंने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ शामिल होकर दुनिया को यह संदेश दिया कि वे सिर्फ आर्मी चीफ नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी राजनीतिक भूमिका निभा रहे हैं.
3. तीसरा चरण- 3 सितंबर को बीजिंग में हुई चीनी सैन्य परेड में उनकी मौजूदगी को तख्तापलट की अंतिम तैयारी माना जा रहा है.
पाकिस्तान की बिगड़ी हालत
आज पाकिस्तान बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है. महंगाई आसमान छू रही है. जनता को दो वक्त की रोटी और साफ पानी तक नहीं मिल रहा. देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ से डूबा है. बलूचिस्तान में बगावत खुलकर सेना को चुनौती दे रही है. अर्थव्यवस्था पूरी तरह विदेशी कर्ज और मदद पर निर्भर है. इन हालात में सेना खुद को एकमात्र विकल्प के रूप में पेश कर रही है.
अमेरिका और चीन का रोल
कहा जा रहा है कि अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप के दौर से, मुनीर को समर्थन दे रहा है. वहीं चीन के साथ बढ़ते रिश्ते भी इस खेल का हिस्सा बताए जा रहे हैं. अगर बीजिंग से हरी झंडी मिलती है तो मुनीर इस्लामाबाद की सड़कों पर टैंक उतारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
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