अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस बार नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ से बाहर हो गए हैं. दरअसल, उनका नामांकन समय सीमा यानी 31 जनवरी के बाद किया गया था, जिस कारण इसे मान्यता नहीं मिली.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस बार नोबेल शांति पुरस्कार पाने के लिए काफी उत्साहित थे. लेकिन उनका नाम इस दौड़ से बाहर हो गया. इसकी सबसे बड़ी वजह नामांकन की समय सीमा मानी जा रही है.
आपको बता दें कि नोबेल शांति पुरस्कार का फैसला नॉर्वे की संसद द्वारा चुनी गई पांच सदस्यीय समिति करती है. इनकी पृष्ठभूमि राजनीति, शिक्षा और मानवाधिकार जैसे क्षेत्रों से जुड़ी होती है. हर साल हजारों नामांकन आते हैं. इनमें सरकारों के सदस्य, सांसद, राष्ट्रपति, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और पूर्व नोबेल विजेता भी नाम भेज सकते हैं. हालांकि आधिकारिक नामांकन सूची 50 साल तक गुप्त रखी जाती है, लेकिन कई लोग खुद ही अपना या दूसरों का नाम सार्वजनिक कर देते हैं.
ट्रंप का नाम क्यों हुआ खारिज?
गौरतलब है कि इस साल कुल 338 उम्मीदवारों के नाम आए हैं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय, नाटो, हांगकांग की कार्यकर्ता चाऊ हैंतुंग और कनाडा के मानवाधिकार वकील इरविन कोटलर जैसे नाम शामिल हैं. ट्रंप का नाम कंबोडिया, इजराइल और पाकिस्तान के नेताओं द्वारा आगे बढ़ाया गया था, लेकिन यह नामांकन 31 जनवरी की समय सीमा के बाद किया गया. इसलिए उन्हें इस बार की सूची में शामिल नहीं किया गया.
समिति का नजरिया
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप तभी दावेदार बन सकते हैं जब वे अपनी नीतियों में बड़ा बदलाव लाएं. फिलहाल उन्हें वैश्विक व्यवस्था को कमजोर करने वाला माना जाता है. समिति आमतौर पर उन लोगों और संस्थाओं को प्राथमिकता देती है जिन्होंने शांति, भाईचारे और मानवता के लिए ठोस कदम उठाए हों. पिछले साल यह सम्मान जापान के परमाणु हमलों से बचे संगठन निहोन हिदांग्य को दिया गया था, क्योंकि समिति लंबे समय से परमाणु हथियारों के खिलाफ चिंतित है.
कब होगा ऐलान और क्या मिलेगा?
नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा इस बार 10 अक्टूबर को नॉर्वे के ऑस्लो में होगी. जबकि वास्तविक पुरस्कार समारोह अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि 10 दिसंबर को ऑस्लो सिटी हॉल में आयोजित होगा. विजेता को एक स्वर्ण पदक, डिप्लोमा और लगभग 10 करोड़ रुपये (11.9 मिलियन क्रोनर) की राशि दी जाएगी.
बताते चलें कि नोबेल शांति पुरस्कार केवल लोकप्रियता पर नहीं, बल्कि इंसानियत और शांति के लिए किए गए ठोस कार्यों पर आधारित होता है. यही कारण है कि यह हमेशा चर्चा और विवाद का विषय बना रहता है.
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