त्योहारों में बाजार में बिकने वाले कई केले रासायनिक तरीके से पकाए जा रहे हैं. ऐसे केले बाहर से चमकीले पीले दिखते हैं, लेकिन अंदर से कच्चे रहते हैं. इनमें इस्तेमाल होने वाला एथेफॉन या कार्बाइड सेहत के लिए बेहद खतरनाक है.
त्योहारों का मौसम है और इसी के साथ मिलावटी सामानों का कारोबार भी तेजी पकड़ चुका है. सिर्फ मिठाइयां ही नहीं, अब फलों में भी मिलावट का खेल शुरू हो गया है. सबसे ज्यादा खतरा उस फल से है जिसे अब तक सबसे पौष्टिक माना जाता था- केला. बाजार में जो चमकदार पीला केला दिखता है, वो असल में कई बार रासायनिक तरीके से पकाया हुआ ‘पीला जहर’ होता है.
कैसे बन रहा है केला ‘पीला जहर’
आपको बता दें कि पहले केले को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल किया जाता था. यह तरीका अब पुराना हो गया है और इसके नुकसान सबको मालूम हैं. लेकिन अब कारोबारियों ने नया रास्ता निकाल लिया है- एथेफॉन (Ethephon). इस केमिकल से कच्चा केला सिर्फ 8 से 10 घंटे में पूरी तरह पीला हो जाता है, जबकि प्राकृतिक रूप से पकने में 4-5 दिन लगते हैं.
एथेफॉन पानी में मिलते ही एथिलीन गैस छोड़ता है, जिससे केला तेजी से पकता है. कृषि में इसका सीमित उपयोग तो सुरक्षित है, लेकिन जब मानक से ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल होता है, तो यह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक बन जाता है. त्योहारों में जल्दी मुनाफा कमाने की चाह में कई व्यापारी इस केमिकल का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं.
सेहत पर खतरनाक असर
विशेषज्ञों के अनुसार, एथेफॉन या कार्बाइड से पके केले शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालते हैं. इनमें मौजूद आर्सेनिक और फॉस्फोरस जैसे तत्व त्वचा, पाचन तंत्र और सांस की नलियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. लंबे समय तक ऐसे केमिकल का सेवन करने से न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, पाचन में सूजन और कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.
केमिकल से पके केले बाहर से ज्यादा पीले और चमकदार दिखते हैं, लेकिन अंदर से अक्सर कच्चे होते हैं. ये जल्दी खराब भी हो जाते हैं और स्वाद में हल्की कड़वाहट होती है.
गोरखपुर में खुला जहरीले केले का खेल
गोरखपुर में फूड सेफ्टी विभाग ने ऐसी ही एक फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया, जहां केले को रासायनिक घोल में डुबोकर कृत्रिम रूप से पकाया जा रहा था. जांच में एथेफॉन और अन्य केमिकल बरामद किए गए और पूरा स्टॉक नष्ट कर दिया गया.
कैसे करें पहचान?
अगर केला बहुत चमकीला, ज्यादा पीला या असमान रंग का लगे तो समझ लें कि उसमें केमिकल का इस्तेमाल हो सकता है. इन तरीकों से आप सुरक्षित, प्राकृतिक केले पहचान सकते हैं.
1. रंग और धब्बे देखें- नेचुरल केले पर हल्के भूरे या काले धब्बे होते हैं, जबकि केमिकल से पके केले चमकीले और बिना दाग के दिखते हैं.
2. दबाकर जांचें- केमिकल वाले केले बाहर से सख्त और अंदर से अधपके होते हैं.
3. पानी में डालें- एक बाल्टी पानी में केला डालें. प्राकृतिक केला डूब जाएगा, जबकि केमिकल वाला तैरेगा.
4. समान पकाव देखें- अगर केला कहीं से पका और कहीं से कच्चा है, तो समझ लीजिए कि यह केमिकल से पका हुआ है.
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