Aryan Valley: भारत का वो गांव, जहां के लोगों से प्रेग्नेंट होने आती हैं विदेशी महलिाएं

लेह-लद्दाख की आर्यन वैली अपनी अनोखी परंपराओं और रहस्यमयी पहचान के लिए मशहूर है. कहा जाता है कि यहां के लोग आर्यों की शुद्ध नस्ल हैं, जिनके आकर्षक चेहरे और नीली आंखों के कारण विदेशी महिलाएं उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर यहां आती हैं.

author-image
Deepak Kumar
New Update

लेह-लद्दाख की आर्यन वैली अपनी अनोखी परंपराओं और रहस्यमयी पहचान के लिए मशहूर है. कहा जाता है कि यहां के लोग आर्यों की शुद्ध नस्ल हैं, जिनके आकर्षक चेहरे और नीली आंखों के कारण विदेशी महिलाएं उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर यहां आती हैं.

भारत के उत्तर में स्थित लेह-लद्दाख की आर्यन वैली हमेशा से रहस्य और चर्चाओं का केंद्र रही है. कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोग आर्यों की शुद्ध नस्ल हैं, जिनके आकर्षक चेहरे और नीली आंखों के कारण विदेशी महिलाएं उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर यहां आती हैं. कुछ लोग मानते हैं कि इनके पूर्वज सिकंदर महान (एलेक्जेंडर) की सेना में सैनिक थे, जो भारत में आकर बस गए. यही कारण है कि यहां के लोगों के चेहरे-मोहरे, नीली आंखें और लंबी नाक यूरोपियन लोगों जैसी दिखती हैं.

Advertisment

आर्यन वैली कहां है?

यह घाटी लेह से करीब 220 किलोमीटर दूर स्थित है. यहां के प्रमुख गांव दान, हानु, दार्चिक, पियामा और गरकौन हैं. इस इलाके में रहने वाला समुदाय खुद को ‘ब्रोकपा’ या ‘ड्रोकपा’ कहता है. ये लोग भगवान बुद्ध के अनुयायी हैं और अपने वैदिक रीति-रिवाजों और परंपराओं को आज भी निभाते हैं.

शुद्ध नस्ल और प्रेगनेंसी टूरिज्म की चर्चा

कहा जाता है कि कई विदेशी महिलाएं, खासकर जर्मनी और यूरोप से, आर्यन वैली आती हैं ताकि उन्हें ‘शुद्ध आर्यन संतान’ मिल सके. इसी वजह से इस जगह को “प्रेगनेंसी टूरिज्म” का नाम दिया गया. हालांकि इस दावे की कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है. स्थानीय लोग भी इन बातों को केवल अफवाह मानते हैं, लेकिन मीडिया और टूरिज्म ने इस मिथक को लोकप्रिय बना दिया है.

आर्यों की थ्योरी कैसे शुरू हुई?

आर्यन नस्ल का विचार सबसे पहले 1853 में जर्मन विद्वान मैक्स मूलर ने दिया था. उन्होंने संस्कृत ग्रंथों के आधार पर कहा कि आर्य लोग उत्तर दिशा से भारत आए और यहां सभ्यता बसाई. लेकिन आधुनिक इतिहासकार जैसे रोमिला थापर और मोना भान ने इस थ्योरी को औपनिवेशिक प्रचार बताया. उनके अनुसार, ‘शुद्ध आर्यन नस्ल’ जैसी कोई चीज वास्तव में मौजूद नहीं है.

आर्यन वैली की असली कहानी

स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि उनके पूर्वज गिलगित से आए थे और सदियों से इसी घाटी में रहते हैं. यहां की संस्कृति, पहनावा और नृत्य बाकी लद्दाखी इलाकों से अलग हैं.

1999 के कारगिल युद्ध के बाद जब यह क्षेत्र पर्यटकों के लिए खुला, तब ‘आर्यन वैली’ नाम से इसे प्रसिद्ध किया गया. सरकार ने इसे टूरिज्म हब के रूप में प्रमोट किया, जिससे यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरी, लेकिन ‘शुद्ध नस्ल’ की पहचान एक विज्ञापन जैसा टैग बन गई.

सच्चाई क्या है?

इतिहास और जेनेटिक रिसर्च यह साबित नहीं कर पाई कि यहां के लोग सिकंदर की सेना के वंशज हैं. आर्यन वैली के लोग सुंदर जरूर हैं, पर उनकी ‘आर्यन पहचान’ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और लोककथाओं से जुड़ी एक परंपरा है.

आज यह घाटी अपनी संस्कृति, परंपरा और खूबसूरत नजारों के कारण देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है.

यह भी पढ़ें- काशी में विद्वानों का संगम : श्री संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास का भव्य सम्मान

Aryan Valley in Ladakh Aryan Valley National News In Hindi national news
Advertisment