धरती पर ग्लोबल वार्मिंग का असर लगातार बढ़ता जा रहा है और इसका सबसे बड़ा सबूत है अंटार्कटिका का विशाल आइसबर्ग A23A. आपको बता दें कि यह दुनिया का सबसे बड़ा आइसबर्ग है, जो अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है. 1986 में यह अंटार्कटिका से टूटकर अलग हुआ था और तब से समुद्र में तैर रहा है. इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 3672 वर्ग किलोमीटर है, जो ग्रेटर लंदन से दोगुना और मुंबई से करीब छह गुना बड़ा है. लेकिन अब इसका लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा खत्म हो चुका है. वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले कुछ सालों में यह पूरी तरह पिघल सकता है.
समुद्र स्तर पर खतरा
वैज्ञानिकों के अनुसार यह आइसबर्ग समुद्र के गर्म पानी से टकरा रहा है और धीरे-धीरे पिघल रहा है. इसके पिघलने से समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा. यही नहीं, इससे तूफानों की रफ्तार और समुद्री उथल-पुथल का खतरा भी कई गुना बढ़ सकता है. नासा की रिपोर्ट के मुताबिक 1993 से 2024 के बीच समुद्र का स्तर 10 सेंटीमीटर बढ़ चुका है. वहीं 1890 से 2024 तक यह 21 से 24 सेंटीमीटर तक बढ़ा है.
नासा और वैज्ञानिकों की रिपोर्ट
नासा की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि आइसबर्ग लगातार सिकुड़ रहा है और दक्षिणी महासागर की ओर बढ़ रहा है. इसके पिघलने से समुद्र में बड़ी मात्रा में मीठा पानी घुल सकता है, जिससे पूरा इकोसिस्टम बदल जाएगा. रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2000 से 2023 तक ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र स्तर 18 मिमी बढ़ा है और 2040 तक यह 32 से 67 मिमी तक बढ़ सकता है.
अंटार्कटिका में बढ़ती गर्मी
अंटार्कटिका, जिसे पृथ्वी का सबसे ठंडा स्थान और बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है, अब रिकॉर्ड तोड़ गर्मी झेल रहा है. यहां के बर्फ के मैदान तेजी से गायब हो रहे हैं. पिछले तीन दशकों की तुलना में हाल के वर्षों में हरियाली क्षेत्रों में 30% की बढ़ोतरी हुई है. हरियाली बढ़ना आमतौर पर अच्छा माना जाता है, लेकिन ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ का कम होना धरती के सूखने और ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर संकेत हैं.
ग्लोबल वार्मिंग का असर सिर्फ अंटार्कटिका या आर्कटिक तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर के देशों पर दिख रहा है. बेहिसाब बारिश, बाढ़, तूफान और तबाही की घटनाएं इसी का नतीजा है.