नई दिल्ली, 9 जुलाई (आईएएनएस)। नई दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में लोकतान्त्रिक अध्यापक मंच और एक काम देश के नाम संस्था की ओर से वन नेशन वन इलेक्शन विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में शिक्षकों के साथ तमाम नेताओं ने हिस्सा लिया।
इस दौरान दिल्ली सरकार के मंत्री आशीष सूद ने कहा कि मेरा शिक्षकों से पुराना रिश्ता रहा है। मेरे परिवार में कई लोग शिक्षक रहे हैं। मैं नगर निगम की शिक्षा समिति का चेयरमैन भी रहा। शिक्षकों का समाज के निर्माण में एक अहम रोल है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि जनता ने जिस उम्मीद के साथ हमें सरकार में पहुंचाया है। हम शिक्षकों की उम्मीद को पूरा करेंगे। सरकार की ओर से विश्वास दिलाता हूं कि दिल्ली की स्कूली व्यवस्था को बेहतर बनाने का काम करेंगे। हम कमियों को दूर करेंगे।
उन्होंने कहा कि हर बड़ी क्रांति की शुरुआत शिक्षा के जरिए होती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिक्षक स्कूल में किताब पकड़े या बैलेट बॉक्स की पर्ची पकड़े। साल दर साल तमाम चुनाव होंगे और कोड ऑफ कंडक्ट लगते ही शिक्षकों की ड्यूटी लग जाएगी। बार-बार चुनाव हमारे देश के लिए ठीक नहीं है। हमें वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर माहौल बनाना पड़ेगा और सभी को आगे आना होगा।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि दिल्ली में जब केजरीवाल जी की सरकार थी तो उन्होंने आयुष्मान योजना नहीं लागू होने दिया। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा। सरकारी योजनाओं को लागू करने के लिए सरकारों के बीच तालमेल होना जरूरी है और इसके लिए एक स्थिर सरकार होना आवश्यक है। हम दिल्ली में तमाम विकास के कामों को कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि देश के विकास के लिए एक साथ चुनाव होना जरूरी है। ये केवल बीजेपी की व्यवस्था नहीं है बल्कि सभी दलों के लिए है और इससे देश को लाभ मिलेगा। एक साथ चुनाव कराने से हमारे देश के विकास की गति में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, खर्च कम होगा और समय की बचत होगी, जिसका उपयोग राष्ट्र निर्माण के लिए किया जा सकेगा। सभी राजनीतिक दलों पर इस पहल के समर्थन में धीरे-धीरे आगे आने का दबाव बनाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाना चाहिए।
एनडीएमसी के उपाध्यक्ष कुलजीत सिंह चहल ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर वन नेशन वन इलेक्शन का आह्वान किया है। यह विचार नया नहीं है, 1952 से 1967 के बीच भारत में एक चुनाव प्रणाली लागू थी। समय के साथ एक ही वर्ष में कई चुनाव होने लगे, कभी लोकसभा, कभी राज्य विधानसभा, नगर निकाय या उपचुनाव। इससे खर्चों में भारी वृद्धि हुई। कुल खर्चों को कम करने और देश के विकास को गति देने के लिए वन नेशन वन इलेक्शन की मांग बढ़ रही है।
--आईएएनएस
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