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दिवाली के बाद हर साल उत्तर भारत में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है. इसका एक बड़ा कारण है पराली जलाना भी होता है. किसानों के पास पराली प्रबंधन के विकल्प कम होने के कारण वे इसे खेत में ही जला देते हैं. इसी चुनौती को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नई पहल की शुरुआत की है. इस पहल या फिर योजना का नाम है ‘पराली दो, खाद लो.' इसका लक्ष्य प्रदूषण कम करना और किसानों को आर्थिक व कृषि संबंधी लाभ देना है.
क्या है ‘पराली दो, खाद लो’ योजना?
यह योजना मूल रूप से एक पराली एक्सचेंज कार्यक्रम है. इसके तहत किसान अपनी पराली सरकारी या स्थानीय निर्धारित केंद्रों पर जमा करेंगे. बदले में उन्हें मुफ़्त जैविक/आयुर्वेदिक खाद प्रदान की जाएगी. सरकार का कहना है कि यह खाद पूरी तरह ऑर्गेनिक होगी और इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी, फसल की गुणवत्ता सुधार होगी और रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होगी. योजना को शुरुआती रूप से कुछ चयनित जिलों में लागू किया गया है, जिसके बाद इसे पूरे प्रदेश में विस्तार देने की तैयारी है.
किसानों को कैसे मिल रहा लाभ?
योजना किसानों के लिए कई प्रकार से लाभकारी मानी जा रही है:
1. अतिरिक्त आय और मुफ्त खाद का लाभ
किसान पराली को बेचने या नष्ट करने के बजाय उसे सरकारी केंद्रों पर जमा कराकर मुफ़्त खाद हासिल कर सकते हैं. यह उनके कृषि खर्च को कम करता है.
2. मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार
आयुर्वेदिक/जैविक खाद से मिट्टी की संरचना मजबूत होती है. लंबे समय में इससे फसल उत्पादन में वृद्धि और भूमि की उर्वरता बेहतर होती है.
3. प्रदूषण में कमी
पराली न जलाने से हवा में धुआं और जहरीले कणों की मात्रा कम होती है. इससे ग्रामीण व शहरी, दोनों क्षेत्रों में प्रदूषण पर नियंत्रण में मदद मिलती है.
4. किसानों को वैकल्पिक समाधान
इस योजना के माध्यम से किसानों को पराली प्रबंधन का एक सरल विकल्प मिलता है, जो उन्हें अवैध या हानिकारक तरीके अपनाने से रोकता है.
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