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बीएस मानक क्या होते हैं? HSRP रजिस्ट्रेशन में क्यों है इसकी जरूरत, जानें यहां

High Security registration Plate: ऐसे वाहन जिनपर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट (HSRP) और कलर कोडेड स्टीकर नहीं लगे हैं, उनका 5500 रुपये तक का चालान किया जा रहा है. दिल्ली में अब तक लगभग 1000 लोगों का चालान किया जा चुका है. 

Updated on: 23 Dec 2020, 08:23 AM

नई दिल्ली:

High Security registration Plate: ऐसे वाहन जिनपर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट (HSRP) और कलर कोडेड स्टीकर नहीं लगे हैं, उनका 5500 रुपये तक का चालान किया जा रहा है. दिल्ली में अब तक लगभग 1000 लोगों का चालान किया जा चुका है. ऐसे में लोग नंबर प्लेट और कलर स्टीकर के लिए रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं. रजिस्ट्रेशन के दौरान आपसे गाड़ी की बीएस मानक यानि भारत स्टेज की जानकारी मांगी जाती है. तो आइये जानते हैं कि बीएस मानक क्या होते हैं और उनकी जरूरत क्यों हैं...

क्या होते हैं BS नॉर्म्स?
भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड्स को 2000 में पेश किया गया था. ये एमिशन स्टैंडर्ड्स हैं जिसे केंद्र सरकार तय करती है. ये एमिशन स्टैंडर्ड्स इंटरनल कंबशन इंजन इक्विपमेंट (मोटर व्हीकल शामिल) से निकलने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तय किए जाते हैं. अलग-अलग नॉर्म्स केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित समयरेखा और मानकों के अनुसार लागू किए जाते हैं, जो पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत आता है.

कब लागू हुए बीएस मानक 
2000 से पहले वाहनों पर भारत में कोई उत्सर्जन मानक लागू नहीं थे. सरकार ने 2000 में यूरोप की तर्ज़ पर उत्सर्जन मानक से जुड़ी नीति बनाई और बीएस-1 (भारत स्टेज-1) लागू किया था. नए मानकों में बहुत सारी बातों को शामिल किया गया है जैसे नई गाड़ियों के इंजन नए मानक के हिसाब से बनेंगे और जो ईंधन इस्तेमाल किया जा रहा था उसको भी मानक के अनुरूप लाना होगा. साल 2000 में पूरे भारत में बीएस-1 यानी भारत स्टेज 1 मानक लागू किए गए. ये यूरो-1 मानकों के समान थे. इसके बाद आए मानकों को अलग-अलग स्तरों पर लागू किया गया. 
बीएस-2 मानक साल 2001 में एनसीआर, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में लागू किया गया. 2003 में इसे 13 शहरों में किया गया. 2005 में इसे पूरे देश में लागू किया गया. इसी साल एनसीआर और 13 शहरों में बीएस-3 लागू कर दिया गया जो 2010 में पूरे देश में लागू हुआ. 
2010 में ही एनसीआर और इन 13 शहरों में बीएस 4 लागू कर दिया गया जो 2017 से पूरे भारत में लागू हुए. लागू होने का मतलब जिस तारीख से नए मानक लागू हुए उस दिन के बाद रजिस्टर्ड सभी गाड़ियों को उन मानकों का पालन करना चाहिए. भारत सरकार ने तय किया कि वो बीएस-5 मानक को छोड़कर सीधे बीएस-6 मानक को अपनाएगी. 1 अप्रैल 2020 के बाद भारत में रजिस्टर होने वाले सभी वाहन बीएस-6 उत्सर्जन मानक वाले होने चाहिए.

क्या फर्क है बीएस-4 और बीएस-6  में?
बीएस-6 से सबसे पहला अंतर आता है प्रदूषण में कमी. डीजल और पेट्रोल दोनो में सल्फर होता है. जिस ईंधन में जितना सल्फर ज्यादा होता है उसमें उतनी ज्यादा ताकत और प्रदूषण होता है. डीजल में सल्फर ज्यादा होता है. बीएस-6 वाहनों के उत्सर्जन में सल्फर की मात्रा बीएस-4 की तुलना में पांच गुना तक कम होगी. बीएस-4 में यह मात्रा 50 पार्टिकल पर मिलियन होती है वहीं बीएस-6 में यह 10 पार्टिकल पर मिलियन हो जाएगी. साथ ही नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की मात्रा डीजल वाहनों में 68 प्रतिशत तक और पेट्रोल वाहनों में 25 प्रतिशत तक कम हो जाएगी. इससे ग्रीन हाउस गैसों का कम उत्सर्जन होगा.

हाई सिक्यूरिटी नंबर प्लेट के लिए जरूरी
हाई सिक्यूरिटी नंबर प्लेट के रजिस्ट्रेशन के लिए आपसे आपकी गाड़ी का बीएस मानक पूछा जाता है. बीएस मानक आपकी गाड़ी की आरसी पर लिखे होते हैं. अगर आपकी आरसी पर बीएस मानक नहीं है तो आप गाड़ी की मैन्यूफैक्चरिंग डेट और बीएस मानक लागू होते के साल से गाड़ी का बीएस मानक पता तक सकते हैं.