/newsnation/media/post_attachments/images/2024/05/01/rulesofpropertydistribution-82.jpeg)
Rules Of Property Distribution( Photo Credit : Social Media)
Rules Of Property Distribution: भारत में माता-पिता की संपत्ति के बंटवारे के नियम धर्म और व्यक्तिगत कानून द्वारा निर्धारित किए जाते हैं. भारत में, माता-पिता की संपत्ति के कई कानूनी प्रावधान और नियम हैं. हिन्दू संपत्ति कानून बालकों, बालिकाओं, और पति-पत्नी के संपत्ति के वितरण को विनियमित करता है. इसके अनुसार, जब एक माता-पिता की मृत्यु होती है, तो उनकी संपत्ति उनके वारिसों के बीच वितरित की जाती है. यह विधि भारतीय संपत्ति कानून के अनुसार अनुच्छेद 8 के तहत है, और इसमें भारतीय संपत्ति के वितरण की प्रक्रिया और कई संपत्ति प्रकारों के लिए कानूनी नियमों का विवरण होता है. जबकि मुस्लिम संपत्ति कानून में अलग वितरण की प्रक्रिया होती है जो इस्लामिक कानून और शरीयत के अनुसार चलती है. इन कानूनी प्रावधानों के अलावा, भारतीय संविधान और अन्य कानूनी नियमों में भी माता-पिता की संपत्ति को संरक्षित करने के लिए विभिन्न विधियों और प्रावधानों का प्रावधान किया गया है.
सभी धर्मों में संपत्ति बंटवारे के नियम
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, सभी हिंदू, चाहे वे किसी भी जाति, लिंग या समुदाय के हों, इस कानून के अधीन हैं. इस अधिनियम के तहत, माता-पिता की संपत्ति में बेटों और बेटियों को समान अधिकार है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत कानून) के तहत, बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटों की तुलना में आधा हिस्सा मिलता है.
ईसाई भी अपनी संपत्ति के बंटवारे के लिए अपने व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं.
कुछ सामान्य नियम जो भारत में माता-पिता की संपत्ति के बंटवारे पर लागू होते हैं वो भी जान लें, सभी उत्तराधिकारी समान हैं, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत, बेटों और बेटियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार है. इसका मतलब है कि उन्हें संपत्ति के मूल्य का समान हिस्सा मिलता है, चाहे वे पुरुष हों या महिला. माता-पिता अपनी वसीयत में अपनी संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को देने के लिए स्वतंत्र हैं. अगर उन्होंने वसीयत नहीं लिखी है, तो संपत्ति का बंटवारा कानून के अनुसार होगा.
संयुक्त परिवार की संपत्ति के नियम भी जान लें. अगर संपत्ति संयुक्त परिवार की है, तो सभी सदस्यों (पुरुष और महिला दोनों) का उस पर समान अधिकार होता है. बंटवारा की बात चल रही है तो ऋण और देनदारियां भी इसी में आती हैं. संपत्ति का बंटवारा करते समय, ऋण और देनदारियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
Source : News Nation Bureau