अब ऐप के जरिए घर बैठे करा सकेंगे एम्स में आंख का इलाज

एम्स का राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र कॉर्निया के प्रतिरोपण का इंतजार कर रहे मरीजों को अब बेहतर इलाज देने और सर्जरी करा चुके लोगों की देखभाल के लिए एक मोबाइल ऐप डेवलप करने जा रहा है.

एम्स का राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र कॉर्निया के प्रतिरोपण का इंतजार कर रहे मरीजों को अब बेहतर इलाज देने और सर्जरी करा चुके लोगों की देखभाल के लिए एक मोबाइल ऐप डेवलप करने जा रहा है.

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Mohit Saxena
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eye treatment in AIIMS( Photo Credit : social media )

आंखों के मरीजों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) एक बड़ी और बेहतरीन सौगात देने जा रहा है. एम्स का राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र कॉर्निया के प्रतिरोपण का इंतजार कर रहे मरीजों को अब बेहतर इलाज देने और सर्जरी करा चुके लोगों की देखभाल के लिए एक मोबाइल ऐप डेवलप करने जा रहा है. देश के दूर-दराज इलाकों से आंख का इलाज कराने दिल्ली की एम्स आने वाले मरीजों को बड़ी राहत मिलने जा रही है. जी हां, एम्स द्वारा तैयार किए जा रहे ऐप के जरिए देशभर में आंख संबंधी तमाम रोगों के मरीज इस ऐप के जरिए एम्स के डॉक्टरों से सीधे परामर्श कर सकेंगे. सिर्फ इतना ही नहीं इस ऐप के जरिये सर्जरी का इंतजार कर रहे मरीजों की मॉनिटरिंग करने में भी मदद मिलेगी. ये एप प्रवेश प्रक्रिया, नेत्र प्रत्यारोपण और सर्जरी के बाद के अनुवर्ती के बारे में जानकारी प्रदान करता है. जिस तरह से कोरोना ने नेत्र दान और उसके ट्रांसप्लांट में रुकावटें डाली है उसके बाद ये एम्स का ये निर्णय आँखों के मरीजों के लिए लाभदायक साबित होगा.

डॉक्टर-मरीज ऐप से करेंगे सीधी बात

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नेत्र विज्ञान केंद्र के हेड डॉ. जे एस टिटियाल के मुताबिक इस एप के जरिए मरीज घर बैठे एम्स के आरपी सेंटर के डाक्टरों से अपना इलाज करा सकेंगे. एक तरह से डिजिटल तरीके से ही मरीज अपनी आँखों से जुड़ी परेशानियों को घर बैठे डॉक्टर से बता सकेंगे. ये सुविधा सिर्फ दूर से आने वाले लोगों के लिए है.

नियमित जांच अब होगी आसान

सेंटर के हेड डॉ. जे एस टिटियाल ने बताया कि ट्रांस्प्लांट सर्जरी के बाद मरीज को नियमित जांच कराना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. अगर ट्रांस्पा कराने वाले व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली उसके प्रतिरोपित अंग पर हमला करती है तो इसका कुछ दिनों के भीतर इलाज किया जाना होता है. अगर मरीज एक या दो हफ्ते बाद आता है तो इसका इलाज नहीं किया जा सकता. अगर ऐसे मरीज पर नजर रखी जाती है तो उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है.’’ इस ऐप के छह महीनों में शुरू होने की उम्मीद है.

Source : Arun Kumar

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