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अब राजनीतिक दल वोटर्स को नहीं बांट सकेंगे मुफ्त का सामान, वित्त आयोग ने लगाई रोक

Finance Commission: चुनाव आते ही वोटर्स को लुभाने का चलन बहुत पुराना है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल वोटर्स को जमकर खैरात बांटते हैं. साथ ही उनसे बदले में वोट देने की अपील भी करते हैं. चुनाव आयोग के काफी शिकंजा कसने के बाद भी चलन आज तक बंद नहीं हुआ है.

Updated on: 30 Jul 2022, 11:04 AM

highlights

  • अक्सर वोटर्स को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियां करती अनाप-सनाप खर्चा
  • चुनाव आयोग के बैन के बाद भी वोटर्स को दिये जाने वाले गिफ्ट नहीं हो रहे कम 
  • वित्त आयोग ने इस चलन को बंद करने के लिए बनाया फुप्रूफ प्लान 

नई दिल्ली :

Finance Commission: चुनाव आते ही वोटर्स को लुभाने का चलन बहुत पुराना है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल वोटर्स को जमकर खैरात बांटते हैं. साथ ही उनसे बदले में वोट देने की अपील भी करते हैं. चुनाव आयोग के काफी शिकंजा कसने के बाद भी चलन आज तक बंद नहीं हुआ है. मामले को गंभीरता से लेते हुए वित्त आयोग ने वोटर्स को मुफ्त सामान बांटने पर रोक लगाने का फुलप्रूफ प्लान बनाया है. आपको बता दें कि  बीते मंगलवार को ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि चुनाव के दौरान ऐसे मुफ्ट बंदरबांट पर लगाम कसने के लिए आप वित्‍त आयोग की भी मदद लीजिए. इसके बाद 15वें वित्‍त आयोग के मुखिया एनके सिंह ने राजनीतिक पार्टियों की इस मनमानी पर लगाम लगाने की ठान ली है.  आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में भी मामले की सुनवाई 3 अगस्त को है.

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कानून में बदलाव की बात
15वें वित्‍त आयोग के मुखिया एनके सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्‍पणी पर कहा, राज्‍यों को टैक्‍स में हिस्‍सेदारी मिलना उनका अधिकार है. लेकिन मुफ्ट के सामान बांटने से उनकी आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रही है. इस पर लगाम कसने के लिए राज्‍यों के बढ़ते राजकोषीय घाटे और उन्‍हें मिलने वाले अनुदान को अब मुफ्त की योजनाओं से लिंक किया जाएगा. इसके लिए केंद्र और राज्‍यों के कानून में बदलाव करना होगा, इसके लिए सभी तैयारी पूर्ण हो चुकी हैं. बताया जा रहा है कि अनुदान को मुफ्त की योजनाओं से लिंक होने के बाद जरूर राजनीतिक पार्टियां खैरात बांटने से पहले सोचेंगी जूरूर.

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में  इसको लेकर अपील दायर की जा चुकी है. जिसमें आंकड़े पेश किये गये थे कि इस तरह के चलन  से  राज्‍यों पर कुल 6.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है. कई राज्‍यों का कर्ज उनकी जीडीपी का 40 फीसदी से भी अधिक पहुंच गया है, जिसमें बड़ी भूमिका मुफ्त की योजनाओं की भी है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मामले में संज्ञान लेने को कहा है.