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Exclusive: जिंदगी को दांव पर लगाकर लोकल ट्रेन में रोजाना कर रहे हैं सफर

Exclusive: यात्रियों का अपना पक्ष भी है ज्यादातर लोगों का कहना है कि ट्रेन में जगह नहीं होती, यहां तक लोग 10-15 की संख्या में ट्रेन के दरवाजों पर लटके होते हैं और ऑफिस जाने में देरी होने के चलते उन्हें मजबूरन ट्रेन की छतों पर चढ़ना पड़ता है.

Updated on: 23 Sep 2021, 01:13 PM

highlights

  • गाज़ियाबाद से दिल्ली कामकाज के लिए रोज़ाना सफ़र करने वालों की तादाद 2.5 लाख से ज़्यादा 
  • गाजियाबाद के लोनी, साहिबाबाद, मेरठ से रोज़ाना हज़ारों लोग लोकल ट्रेन में सफर करते हैं 

नई दिल्ली:

Exclusive Report: दिल्ली में कामकाज के लिए एनसीआर से हज़ारों की संख्या में कामगार दिल्ली के लिए लोकल ट्रेन (Local Train) का सहारा लेते हैं. गाजियाबाद के लोनी, साहिबाबाद, मेरठ से रोज़ाना हज़ारों लोग लोकल ट्रेन में सफर करते हैं वो भी जान पर खेलकर. अपने ऑफिस पहुंचने की जद्दोजहद में लेकिन कुछ ऐसे स्टेशन हैं जहां से लोगों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि हर दिन मौत का ख़ौफ़ रोज़ाना लोकल ट्रेन से यात्रा करने वालों को परेशान कर रही है. दिल्ली से महज़ 5 किलोमीटर की दूरी पर है बेहटा हाजीपुर स्टेशन जहां से हज़ारों की तादाद में लोग दिल्ली में अपने काम काज के लिए लोकल ट्रेन का सफ़र करते हैं लेकिन ये सफ़र इतना खतरनाक है कि इसने मुंबई की लोकल ट्रेन को भी मात दे दी है. महिलाओं को भी पुरुषों के साथ ट्रेन में लटककर सफ़र करना पड़ रहा है.

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ट्रेनों की छत पर बिजली के तार के नीचे जान जोखिम में डालकर सफर
आलम ये है कि लोगों को जब बोगी के अंदर जगह नहीं मिलती तो यात्री ट्रेनों की छत पर बैठ जाते हैं जहां ऊपर इलेक्ट्रिक तारों में जानलेवा बिजली चालू रहती है. ऐसे में लोकल यात्री रोज़ाना मौत के साए में सफ़र करते हैं और प्रशासन थोड़ी बहुत कार्यवाई करके खाना पूर्ति कर देता है. यात्रियों का अपना पक्ष भी है ज्यादातर लोगों का कहना है कि ट्रेन में जगह नहीं होती, यहां तक लोग 10-15 की संख्या में ट्रेन के दरवाजों पर लटके होते हैं और ऑफिस जाने में देरी होने के चलते उन्हें मजबूरन ट्रेन की छतों पर चढ़ना पड़ता है. समय पर न पहुंचने पर नौकरी से निकाला जा सकता है ऐसे में कोई चारा नहीं है.

दिहाड़ी फेक्ट्री मज़दूरों की संख्या सबसे ज़्यादा
जानलेवा लोकल ट्रेन का सफर करने वालों में सबसे ज़्यादा गाजियाबाद से दिल्ली जाने वाले दिहाड़ी फेक्ट्री मज़दूर, दूध देरी की सप्लाई करने वाले और ऑफिस में कामकाज करने वाले लोग हैं जिनका वेतन इतना नहीं कि वो किसी दूसरे माध्यम से सफ़र में खर्च उठा सके, ऐसा कहना है यात्रा करने वालों का और ये एक बड़ी वजह है न्यूज़ नेशन ने इन यात्रियों से जब बात की की आख़िर जान को हथेली पर रखकर क्यों सफ़र करते हैं? इस पर जवाब मिला कि कोई ऑप्शन नहीं है और सरकार से आग्रह है कि लोकल ट्रेनों की संख्या बढ़ाएं.

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बिना टिकट यात्रा करने वालों की भी है बड़ी तादाद
जानपर खेल कर यात्रा करना मजबूरी है, ऐसा सिर्फ ट्रेनें कम हैं, इसलिए नहीं है, बल्कि बिना टिकट यात्रा करने वालों की तादाद भी काफ़ी ज़्यादा है जिसकी वजह से रेलवे को भी राजस्व का बड़ा नुकसान होता है और इसके लिए समय समय पर चेकिंग अभियान भी चलाए जाते हैं लेकिन ये सिर्फ खानापूर्ति के लिए हैं इससे ज़्यादा नहीं. गाज़ियाबाद से दिल्ली कामकाज के लिए रोज़ाना सफ़र करने वालों की तादाद 2.5 लाख से ज़्यादा है और ऐसे ही रोज़ाना सफ़र हो रहा है न्यूज़ नेशन ने बेहटा हाजीपुर पहुंच कर ग्राउंड पर लोगों से बात की, समझ में आया कि सुबह 9 से 10 बजे के बीच सिर्फ एक ही ट्रेन है जिसकी वजह यात्रियों की संख्या काफी बढ़ जाती है, जिसकी वजह से यात्री तो परेशान है ही साथ ही साथ रेलवे प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौतियां हैं.