क्या बैंकों पर NPA का बोझ हुआ कम? RTI के जरिए RBI ने दिया ये जवाब
खबर सामने आई है कि बैंकों ने बीते पांच सालों में दस लाख करोड़ रुपये के बैड लोन की वसूली की है. इसे बड़ी उपलब्धि की तरह देखा जा रहा है.
नई दिल्ली:
देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों का योगदान सबसे अधिक होता है. ये जनता के बीच पैसे की आवाजाही को बैलेंस करते हैं. मगर बीते पांच सालों की बात करें तो कई बैंकों की स्थिति खस्ताहाल बनी हुई है. बैंकों में बैड लोन (Bad Loan) की भरमार है. इस कारण बैंकों में एनपीए (NPA) बढ़ता जा रहा था. इसकी वजह से बैकों को काफी नुकसान हो रहा है. इस बीच एक ऐसी खबर सामने आई है कि बैंकों ने बीते पांच सालों में दस लाख करोड़ रुपये के बैड लोन की वसूली की है. इसे बड़ी उपलब्धि की तरह देखा जा रहा है. ऐसा बताया जा रहा है कि बैंकों के कुल 10,09,510 करोड़ रुपये डूब चुके थे. इसे वसूल लिया गया है.
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मगर ऐसा नहीं है. यह रकम बट्टे खाते से यानी बैड लोन से हटी है. जबकि एनपीए में वसूली गई राशि के अलावा बाकी राशि अभी भी मौजूद है. बट्टे खाते से दस लाख करोड़ की रकम को हटा दिया गया है. इस राशि में से महज 13 प्रतिशत की वसूली हुई यानी 1.32 लाख करोड़ रुपये है. बाकी बची रकम एनपीए में चली गई है. यह राशि अब वसूली जा सकती है.
दरअसल एक आईटीआई (RTI) के जरिए आरबीआई (RBI) से यह जानकारी मांगी गई थी. इस पर RBI ने RTI का जवाब बैकों द्वारा दी गए डाटा के आधार पर दिया. दरअसल बैंकों ने बीते कई सालों से कई लोन को राइट आफ की कैटगरी में डाल दिया था यानी इसे बट्टे खाते में डाला. अब इसे वसूला जा रहा है. ऐसे में इस रिकवरी के कारण राइट आफ खाते से इस पैसे को हटा दिया गया है.
क्या होता है एनपीए
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के अनुसार, अगर कोई बैंक लोन की किस्त या लोन की रकम को 90 दिनों तक यानी तीन माह तक नहीं चुका पाता है, तो इसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) के रूप में माना जाता है. इसे आम भाषा में कह सकते हैं कि ऐसी रकम जिससे बैंक को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. एक और गणित से समझे तो अगर किसी ने तीन माह तक लगतार अपनी ईएमआई (EMI) का भुगतान नहीं किया तो बैंक उसे एनपीए में डाल देता है. इसका अर्थ ये हुआ कि बैंक इसे फंसे हुए कर्ज के रूप में देखता है. कई अन्य वित्तीय संस्थाओं की यह समय सीमा 120 दिनों की होती है. वहीं विदेशों में यह समय सीमा 45-90 के अंदर होती है.
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