लक्ष्मी नारायण मित्तल कैसे बन बिजनेस“टायकून्स ऑफ इंडिया”, डॉ विवेक बिंद्रा ने बताई वजह

Business: आजकल मोटिवेशनल स्पीकर और बिजनेस कोच डॉ विवेक बिंद्रा ने हाल ही में देशभर के युवाओं को बिजनेस गाइडेंस और स्ट्रेटजी देने के लिए अपने यूट्यूब चैनल पर “टायकून्स ऑफ इंडिया” नाम की एक सीरीज को लॉन्च किया है.

Business: आजकल मोटिवेशनल स्पीकर और बिजनेस कोच डॉ विवेक बिंद्रा ने हाल ही में देशभर के युवाओं को बिजनेस गाइडेंस और स्ट्रेटजी देने के लिए अपने यूट्यूब चैनल पर “टायकून्स ऑफ इंडिया” नाम की एक सीरीज को लॉन्च किया है.

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Sunder Singh
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Business: आजकल मोटिवेशनल स्पीकर और बिजनेस कोच डॉ विवेक बिंद्रा ने हाल ही में देशभर के युवाओं को बिजनेस गाइडेंस और स्ट्रेटजी देने के लिए अपने यूट्यूब चैनल पर “टायकून्स ऑफ इंडिया” नाम की एक सीरीज को लॉन्च किया है. इस सीरीज के तीसरे एपिसोड में उन्होंने स्टील इंडस्ट्री के किंग लक्ष्मी नारायण मित्तल की बात की. उन्होने बताया कि  लक्ष्मी नारायण मित्तल के स्ट्रगल से लेकर सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचने तक के सफ़र और उनकी कुछ खास बिजनेस स्ट्रेटेजीज बेहद खास हैं. बुर्ज खलीफा से लेकर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर तक इन्हीं की Arcelormittal कंपनी का स्टील लगा हुआ है. ये दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी है. साल 2005 में ये दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति भी थे लेकिन इस सफलता तक पहुंचने का इनका सफर काफी छोटे बड़े संघर्षों से भरा रहा है.

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मेहनत से पूरे किए बड़े सपने

लक्ष्मी नारायण मित्तल का जन्म राजस्थान के एक छोटे से गांव में हुआ और परिवार इनका बेहद साधारण था। घर में कई सारे बच्चे थे  इसीलिए परवरिश भी काफी साधारण हुई थी। परिवार की बेहतरी के लिए इनके पिता राजस्थान से परिवार सहित कोलकाता में जाकर रहने लगे, तब एक छोटे से कमरे में ये नौ लोग रहा करते थे। लक्ष्मी नारायण मित्तल की एक साधारण हिंदी मीडियम स्कूल से इनकी पढ़ाई हुई थी लेकिन फिर भी बारहवीं की परीक्षा में इन्होंने टॉप किया। 

कमजोर थी अंग्रेजी 

बारहवीं में टॉप आने के कारण इनका कोलकाता के लगभग सभी कॉलेजेस में एडमिशन हो गया था लेकिन कमज़ोर अंग्रेजी के कारण सेंट जेवियर्स कॉलेज में इनका एडमिशन नहीं हो सका। तब लक्ष्मी नारायण मित्तल ने ठान लिया कि वो वहां एडमिशन लेकर ही रहेंगे, अपनी पॉकेट मनी से जैसे तैसे एक अंग्रेजी अखबार खरीदकर उन्होंने पढ़ना शुरू किया। उस अख़बार से हर दिन कुछ शब्द सीखकर वो एक वाक्य बनाते और सेंट जेवियर्स कॉलेज के प्रिंसिपल से जाकर बात करते। उनकी इस लगन को देखकर प्रिंसिपल ने उन्होंने कॉलेज में एडमिशन दे दिया।

 

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