टूथब्रश के बजाए दातुन का करें इस्तेमाल! आयुर्वेद में बताए हैं चमत्कारी फायदे

टूथब्रश के बजाए दातुन का करें इस्तेमाल! आयुर्वेद में बताए हैं चमत्कारी फायदे

टूथब्रश के बजाए दातुन का करें इस्तेमाल! आयुर्वेद में बताए हैं चमत्कारी फायदे

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IANS
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टूथब्रश को छोड़ दातुन का करें इस्तेमाल! आयुर्वेद में बताए हैं चमत्कारी फायदे

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। आज जब बाजार में तरह-तरह के टूथपेस्ट और ब्रश मौजूद हैं, तब भी आयुर्वेद की परंपरागत विधि दातुन अपनी सरलता, प्राकृतिक गुण और प्रभावशीलता के कारण चर्चा में है। सदियों पहले जब न तो टूथब्रश थे और न ही केमिकल युक्त पेस्ट, तब लोग नीम, बबूल और करंज जैसे पेड़ों की टहनियों से अपने दांतों और मसूड़ों की देखभाल करते थे। यह केवल एक सफाई की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि दांतों, मसूड़ों और संपूर्ण मुख स्वास्थ्य के लिए एक सम्पूर्ण आयुर्वेदिक दिनचर्या थी।

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आयुर्वेदिक ग्रंथों में दातुन का उल्लेख प्रभाते दन्तधावनम् श्लोक के माध्यम से मिलता है, जिसमें सुबह उठकर दांतों की सफाई को दिनचर्या का अनिवार्य अंग बताया गया है। परंतु यहां ब्रश नहीं, बल्कि विशेष पेड़ों की दातून को प्राथमिकता दी गई है। नीम और बबूल की टहनियां कड़वी होती हैं, जिनमें प्राकृतिक रूप से जीवाणुनाशक, एंटीसेप्टिक और कसैले गुण पाए जाते हैं। जब इन्हें चबाया जाता है, तो यह मुंह में एक प्रकार का झाग बनाते हैं जो बैक्टीरिया को नष्ट करता है और दांतों के चारों ओर जमा गंदगी को साफ करता है।

सरल भाषा में कहें तो जब आप दातुन को चबाते हैं, तो इसके रेशे आपके दांतों के बीच जाकर प्राकृतिक फ्लॉस की तरह काम करते हैं। इससे प्लाक और फूड पार्टिकल्स हटते हैं। दातुन की नोक से मसूड़ों की मालिश होती है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है और मसूड़े मजबूत बनते हैं। नीम और बबूल में मौजूद कड़वे और कसैले रस मसूड़ों से खून आना, सूजन और बदबू जैसी समस्याओं को जड़ से खत्म करते हैं।

वहीं आधुनिक टूथपेस्ट में मौजूद फ्लोराइड और अन्य केमिकल लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर नुकसानदायक हो सकते हैं, जबकि दातुन एक 100 प्रतिशत प्राकृतिक विकल्प है। यह न केवल दांतों को साफ करता है, बल्कि पूरे मुंह की सेहत को संतुलित करता है। इसमें मौजूद औषधीय गुण मुंह के बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं और लंबे समय तक सांसों को फ्रेश बनाए रखते हैं।

प्राचीन काल में राजा-महाराजा से लेकर ऋषि-मुनि तक सभी दातुन का प्रयोग करते थे। यौगिक दिनचर्या में इसे शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए अनिवार्य माना गया है। यही कारण है कि कई गांवों और पारंपरिक घरों में आज भी सुबह-सुबह लोग नीम या बबूल की टहनी लेकर चबाते दिखाई देते हैं।

--आईएएनएस

पीआईएम/एएस

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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