Uttarkashi Tunnel Rescue: क्या है रैट माइनिंग, जिस पर 9 साल पहले ही NGT ने लगाई थी रोक, अब बचाई कई जानें

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जारी है रेस्क्यू ऑपरेशन, 41 जिंदगियों को बचाने के लिए मैनुअली किया जा रहा बचाव कार्य

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जारी है रेस्क्यू ऑपरेशन, 41 जिंदगियों को बचाने के लिए मैनुअली किया जा रहा बचाव कार्य

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Dheeraj Sharma
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Uttarkashi Tunnel Rescue Know What Is Rat Hole Minning

Uttarkashi Tunnel Rescue Know What Is Rat Hole Minning ( Photo Credit : News Nation)

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों की जान को लेकर पल-पल नई जानकारियां सामने आ रही हैं. 17 दिन से चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में कई तरह की मशीनों के बाद आखिरकार रैट होल माइनिंग के जरिए मजदूरों के बाहर लाने का काम चल रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं जिस रैट माइनिंग के जरिए मशीनों से ज्यादा तेजी से काम हो रहा है उस माइनिंग पर 9 वर्ष पहले यानी 2014 में ही एनजीटी की ओर से रोक लगा दी गई थी. आइए जानते हैं आखिर क्या है ये रैट होल माइनिंग. 

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ऐसे शुरू हुई जिंदगी बचाने की जंग
सुरंग के अंदर 41 जिंदगियां जंग लड़ रही थीं, 12 नवंबर की रात से ही इन लोगों के फंसने की खबर मानों आग की तरह फैलने लगी. इसके बाद तुरंत मजदूरों के बाहर निकालने के लिए बचाव कार्य शुरू हुआ. इस बचाव कार्य के सामने 60 मीटर का लक्ष्य था. यानी 60 मीटर की दूरी तय करना थी, लेकिन 48 मीटर तक तो अमेरिका से आई ऑगर मशीन ने साथ दिया, लेकिन इसके बाद ऑगर मशीन भी खराब हो गई. एक बार फिर उम्मीदों को झटका लगा और नए तरीकों को खोजना शुरू किया गया. 

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इसके साथ ही रैट होल माइनिंग के जरिए मजदूरों को बाहर निकालने का काम शुरू हुआ. सोमवार से शुरू हुई रैट होल माइनिंग ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. 12 फीट की दूरी को तय करने में कुछ ही घंटों का वक्त लगा. हालांकि इस बीच कई तरह की बाधाओं ने खतरा बढ़ाया जिसमें मौसम भी एक था. 

ऐसे काम करती है रैट होल माइनिंग
रैट होल माइनिंग की बात करें तो ये काफी संकीर्ण सुरंगों में ही की जाती है. यानी जहां पर जाने की जरिया ना के बराबर हो वहां इसका उपयोग होता है. हालांकि 2014 में एनजीटी की ओर से इस पर रोक लगा दी गई थी, तर्क दिया गया था. इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है पहाड़ों में दरारें आ सकती हैं. यही नहीं इससे मजदूरों को जान को भी खतरा हो सकता है क्योंकि कोयला खुदाई के लिए ये कई फीट नीचे उतरते हैं. 

आमतौर पर एक व्यक्ति के खदान में उतरने और कोयला निकालने के हिसाब से ये खनन पर्याप्त माना जाता है. एक बार गड्ढे खोदने के बाद माइनर जो खुदाई करते हैं कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए रस्सियों या बांस का इस्तेमाल करते हैं. फिर गैंती, फावड़े आदि के जरिए मैनुअल तरीके से मिट्टी को बाहर निकाला जाता है. 

सुरंग में कैसे हो रही है रैट माइनिंग
सिलक्यारा सुरंग में मजदूरों की जान बचाने के लिए रैट होल माइनिंग शुरू की गई है. इसके लिए दो टीमों को बांटा गया है. दोनों टीमें बारी-बारी से खुदाई कर रही हैं. इनमें से एक ड्रिलिंग का काम करता है, दूसरा हाथ से मलबा बाहर निकालता है और तीसरे उसे आगे जाने के लिए रास्ता बनाता है. वहीं चौथा व्यक्ति मलबे को ट्रॉली में डालता है. जबकि बाहर खड़े लोग इसे बाहर फेंकने का काम करते हैं. करीब 6 से 7 लोगों की एक टीम इस तरह मिट्टी को बाहर करती है.

HIGHLIGHTS

  • उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे हैं 41 मजदूर
  • रैट माइनिंग के जरिए निकालने की तैयारी
  • 9 वर्ष पहले एनजीटी ने रैट होल माइनिंग पर लगाई थी रोक
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