उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 12 नवंबर को निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल के अंदर फंसे सभी 41 मजदूरों को सकुशल निकाल लिया गया. इस रेस्क्यू को टेक्नॉलॉजी, विशेषज्ञ और आस्था की अद्भुत सफलता के रूप में देखा जायेगा. 17 दिनों की मेहनत के बाद इस अनसुलझी पहली को सुलझाया जा सका. करीब एक दर्जन एजेंसियां, राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक घटना स्थल पर दिन रात रेस्क्यू में लगी थीं. करीब 400 घंटों की मशक्कत के बाद 41 मजदूरों को निकालने में सफलता मिली पाई है.
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इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में लगभग 652 सरकारी कर्मचारी 17 दिनों से लगे हुए थे, जिसमें पुलिस के 189, स्वास्थ्य विभाग के 106, इन्डो टिब्बटन बॉर्डर पुलिस के 77, नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स के 62, राज्य 25-77, डिजास्टर ट्रि रिस्पॉन्स फोर्स के 39, जल संस्थान उत्तरकाशी के 46, विद्युत विभाग से 32 और बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन (BRO) से 38 थे.
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यह इतना बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन था जिसे कालांतर तक याद किया जायेगा. प्रधानमंत्री कार्यालय के पूर्व सलाहकार एवं उत्तराखंड पर्यटन विभाग के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी भास्कर कुलबे के अनुसार अगर यह ऑपरेशन विभाग किसी निजी कम्पनी और मजदूरों द्वारा चलाया जाता तो 1000 से भी ज्यादा लोगों की आवश्यकता होती. लेकिन इसमें राज्य सरकार, केंद्र सरकार की सारी एजेंसियां काम कर रही थीं, यह कार्य 652 कर्मचारियों के सहयोग से हो सका.
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जैसे ही 12 नवंबर को उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सुरंग में 4 श्रमिकों के फंसने की सूचना मिली, राज्य सरकार हरकत में आ गई. देहरादून से एसडीआरएफ के जवानों के साथ स्थानीय पुलिस और जिला प्रशासन को तत्काल रेस्क्यू पर लगा दिया गया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस पूरे ऑपरेशन में मुस्तैद नजर आये. शायद ही कोई भी छोटी या बड़ी कार्यवाही हो जहां पर मुख्यमंत्री कार्यालय हमेशा मौके दिखाई दिया.
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सूचना मिलते ही राज्य सरकार और केंद्र सरकार की एजेंसियां रेस्क्यू ऑपरेशन में लगा दी गईं. पहले सुरंग में मलबा हटाने के लिए जेसीबी मशीनें लगाई गयीं लेकिन ऊपर से मलबा गिरने वजह से सफलता हाथ नहीं आयी. फिर देहरादून से ऑगर मशीन मंगाकर सुरंग में ड्रिलिंग शुरू की गई. इसके बाद दिल्ली से अमेरिकन ऑगर मशीन मौके पर लाई गई. इसमें वायुसेना के हरक्यूलिस विमानों की मदद ली गई. यह भी इतना आसान नहीं था. इन विमानों ने मशीन के पुर्जों को चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी पर पहुंचाया, जिसे ग्रीन कॉरिडोर बनाकर सिल्क्यारा लाया गया.
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सुरंग में लगभग 50 मीटर ड्रिलिंग के बाद बीच में सरिया आने से मशीन खराब हो गयी और फिर से रेस्क्यू ऑपरेशन रुक गया. फिर हैदराबाद से प्लाज्मा कटर मंगाकर फंसी हुई ऑगर मशीन को कटर से काटकर बाहर निकाला गया. 16वें दिन मैनुअल ड्रिलिंग आरंभ हो गई. इसके बाद बचाव की रोशनी पहुंचना शुरू हुई. मजदूरों को उम्मीद जगी, 17 वें दिन धीरे-धीरे उम्मीद की किरण हकीकत में बदल गई. सभी श्रमिक सुरक्षित निकल आए.
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(रिपोर्ट: हर्ष वर्धन द्विवेदी )
Source : News Nation Bureau