Uttarkashi Cloudburst : 5 अगस्त को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव और खीरगंगा इलाके में अचानक बादल फटने की भयावक घटना हुई. चंद मिनटों में पूरा इलाका तबाह हो गया. मकान, बाजार, इंसान, मवेशी सब कुछ बह गया. गांव के कई लोग लापता हैं. उत्तराखंड और हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में हर साल इस तरह की घटनाएं होती हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर पहाड़ों में ही बादल इतने क्यों तबाही मचाते हैं? बादल फटना या क्लाउड ब्रस्ट का मतलब है कि एक छोटे इलाके में बहुत कम समय में बहुत तेज बारिश होना.
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क्या है बादल का फटना
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार अगर किसी 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1 घंटे के अंदर 100 मिमी या उससे ज्यादा बारिश हो जाए तो उसे बादल फटना कहा जाता है. जब बादल फटता है तो पानी इतनी जोर से गिरता है कि सब कुछ बहा ले जाता है. मकान, सड़कें, खेत, मवेशी और इंसान सब तबाही की चपेट में आ जाते हैं. खासकर पहाड़ों में ढलान होने के कारण पानी तेजी से नीचे बहता है और सब कुछ उजाड़ देता है. जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है वैसे-वैसे हवा में नमी भी बढ़ती है. जब भारी नमी वाले बादल किसी पहाड़ से टकराते हैं तो वह एक जगह अटक जाते हैं. फिर वह बादल अचानक फट पड़ते हैं और बहुत भारी बारिश होती है. इसे ओरोग्राफिक लिफ्ट कहा जाता है. यह बादल बिजली, गरज और तेज बारिश के लिए जिम्मेदार होते हैं.
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ऐसे बनते हैं बादल
हिमालय इलाकों में गर्म और ठंडी हवाओं के मिलन से भारी बादल बनते हैं. वहां के ऊंचे-नीचे पहाड़ी रास्ते इन बादलों को रोक लेते हैं, जिससे वह एक जगह ज्यादा बारिश कर देते हैं. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, जंगलों की कटाई, पर्यटकों की भीड़ और अवैध निर्माण भी इसकी बड़ी वजह हैं. पिछले कुछ सालों से बादल फटने की घटनाएं बढ़ गई हैं. इनसे जानमाल का बड़ा नुकसान होता है. नदियां और नालों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ आ जाती है. लोग समय रहते नहीं बच पाते और भारी नुकसान होता है. मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के इन दिनों में पहाड़ों के ढलानों पर नहीं जाना चाहिए. नदियों और नालों के किनारे रुकना खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा ज्यादा पेड़ लगाने और जंगलों की कटाई रोकने से जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सकता है.