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Uttarakhand conclave : जमीन से जुड़े नेता हैं मुन्ना सिंह चौहान, कॉलेज के दिनों से हैं समाज सेवा में

हरिद्वार कॉन्क्लेव कार्यक्रम का आज आयोजन किया जाएगा. इनमें कई गणमान्य नेता हिस्सा लेंगे. राज्य में कई बीजेपी नेताओं ने राज्य के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है. इन्हीं में से एक हैं बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुन्ना सिंह चौहान.

Updated on: 14 Oct 2021, 10:59 AM

highlights

  • मुन्ना सिंह चौहान देहरादून के विकासनगर से भाजपा विधायक
  • राजनीतिक करियर में उनकी लोकप्रियता कई मायनों में अनूठी
  • देहरादून के चकराता में 10 जुलाई, 1960 को हुआ था जन्म

देहरादून:

हरिद्वार कॉन्क्लेव कार्यक्रम का आज आयोजन किया जाएगा. इनमें कई गणमान्य नेता हिस्सा लेंगे. उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. विकास की बात करें तो राज्य में कई बीजेपी नेताओं ने राज्य में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है. इन्हीं में से एक हैं बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुन्ना सिंह चौहान. मुन्ना सिंह चौहान वर्तमान में देहरादून के विकासनगर से भाजपा विधायक हैं. राजनीतिक करियर में उनकी लोकप्रियता कई मायनों में अनूठी रही है. वे तब से विधायक चुने जाते रहे हैं, जब उत्तराखंड राज्य का गठन भी नहीं हुआ था. वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड अलग राज्य बना तो मुन्ना सिंह चौहान 09 नवंबर 2000 से फरवरी 2002 तक उत्तरांचल की अनन्तिम विधान सभा सदस्य के तौर पर रहे. अपने क्षेत्र में उन्हें जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है और वहां की कई मूलभूत समस्याओं को दूर करने में उनकी भूमिका सराहनीय रही है.

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मुन्ना सिंह चौहान का जन्म देहरादून के चकराता में 10 जुलाई, 1960 को हुआ. उन्होंने प्रारंभिक व उच्च शिक्षा देहरादून में हासिल की. वे भौतिक शास्त्र में एमएससी की डिग्री हासिल कर चुके हैं. हालांकि वे समाजसेवा में कॉलेज के दिनों से ही शामिल रहे हैं, लेकिन उन्होंने चुनावी राजनीति की शुरुआत समाजवादी पार्टी के साथ की. वर्ष 1991 में वे पहली बार चकराता विधानसभा क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. उन्होंने जन संपर्क और विकास कार्यों पर अपना ध्यान केंद्रित किया जिससे जनता ने अगले टर्म यानी वर्ष 1996 में भी उन्हें ही अपना विधायक चुना. वे विधान सभा में वर्ष 1997-1998 के दौरान अधिष्ठाता मण्डल के सदस्य भी बने.  


वर्ष 2002 में उत्तराखंड जनवादी पार्टी बनाई
मु्न्ना सिंह चौहान वर्ष 2002 में एक क्षेत्रीय दल उत्तराखंड जनवादी पार्टी बनायी लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. वर्ष 2002 में वे विकासनगर सीट पर मात्र 58 वोटों से रनर अप रहे. वर्ष 2007 के आम चुनाव में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उत्तराखंड विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए. वे वर्ष 2007 में उत्तराखण्ड विधान सभा की सरकारी आश्वासन संबंधी समिति के सदस्य और वर्ष 2008 में विधान सभा के अधिष्ठाता मण्डल का सदस्य बनाए गए. 6 अप्रैल 2009 को उन्होंने कुछ मतभेदों के कारण विधान सभा से त्याग पत्र दे दिया और भाजपा छोड़ दी लेकिन कुछ ही वर्षों में दोबारा वापसी कर ली. वर्ष 2017 में वे भाजपा के टिकट पर विकासनगर सीट से फिर विधायक बने. उनकी पत्नी मधु चौहान देहरादून जिला पंचायत की सदस्य भी रही हैं और कई बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ कर फर्स्ट रनर अप रह चुकी हैं. मुन्ना उत्तराखंड के गठन से पहले चकराता से दो बार जीते हैं. वर्ष 2002 में विकासनगर और चकराता से मुन्ना अपनी पार्टी यूजेपी से उतर कर फर्स्ट रनर अप रहे थे। विकासनगर में 58 वोट से कांग्रेस प्रत्याशी नवप्रभात से हारे, जबकि चकराता में प्रीतम सिंह से उनकी हार का अंतर 8 हजार रहा.

2012 में मुन्ना ने भाजपा छोड़ चकराता से यूजेपी से नामांकन भरा था

वर्ष 2007 में चकराता से मुन्ना की पत्नी मुध चौहान ने प्रीतम सिंह के खिलाफ निर्दलीय पर्चा भरा, लेकिन 3741 वोट से हारकर दूसरे नंबर पर रही, जबकि मुन्ना सिंह चौहान विकासनगर में भाजपा की टिकट से कांग्रेस के नवप्रभात से 5156 के अंतर से जीते. वर्ष 2012 में मुन्ना ने भाजपा छोड़ चकराता से यूजेपी से नामांकन भरा, लेकिन प्रीतम सिंह से हार गए. मुन्ना सिंह चौहान दो बार उत्तर प्रदेश विधानसभा और दो बार उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं.  नब्बे के दशक से लेकर अब तक वह पांच बार पार्टियां बदल चुके हैं। हालांकि सक्रिय राजनीति में बार-बार हाशिये पर जाने के बाद वह हर बार नई ताकत के साथ 'मेनफ्रेम' पर लौटे। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड जनवादी पार्टी की सभी 32 सीटों पर हुई हार के बाद उन्होंने उजपा का भाजपा में विलय कर दिया और 2007 में भाजपा के सिंबल पर विकासनगर सीट से विधायक निर्वाचित 
हुए. हालांकि भाजपा संगठन और उनके अहम के बीच हुए टकराव के बाद उन्होंने अप्रैल 2009 में विधायकी से इस्तीफा देते हुए भाजपा को भी अलविदा कर दिया। इसके बाद बसपा के सिंबल पर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. 2012 के चुनाव में निर्दलीय मैदान में उतरे चौहान को एक बार फिर पराजय हाथ लगी.