ऋषिगंगा जलप्रलय से सहमे पहाड़ी क्षेत्र के लोग कर सकते हैं पलायन
ग्रामीण विकास और पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने कहा,
highlights
- ऋषिगंगा जलप्रलय ने ऊंची पहाड़ियों पर रहने वाले को डरा दिया है.
- यहां रहने वाले जलप्रलय की वजह से कर सकते हैं पलायन.
- लोग मैदानी इलाकों में पलायन के बारे में सोच सकते हैं.
देहरादून:
विनाशकारी भूकंपों से लेकर बाढ़, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रह रहे लोगों को बार-बार सताती रही हैं और बड़े पैमाने पर मौतों का कारण बनती रही हैं. ऐसे समय में, जब केदारनाथ सुनामी का आतंक लोगों के जेहन से पूरी तरह हट नहीं पाया था, ऋषिगंगा जलप्रलय ने ऊंची पहाड़ियों पर रहने वाले लोगों के मन में फिर से आशंका पैदा कर दी है और वे सुरक्षित जगह पर बसने के लिए इस क्षेत्र से पलायन कर सकते हैं. केदारनाथ में बाढ़ आने के बाद रुद्रप्रयाग जिले के अगुस्मुनी जैसे भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों से सैकड़ों लोग मुख्य रूप से सुरक्षा कारणों से मैदानों और अन्य जगहों पर देहरादून चले गए थे.
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प्राकृतिक आपदाएं पहाड़ी इलाकों में रह रहे लोगों को बार-बार सताती रही
अगस्त्यमुनि नगर पंचायत की अध्यक्ष अरुणा बेंजवाल ने दावा किया कि अकेले सिल्ली गांव से लगभग 35 से 40 लोग मैदानी इलाकों में गए हैं. वहीं, केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने कहा, "करोड़ों लोगों ने इस तरह से व्यवस्था की है कि वे सर्दियों के दौरान देहरादून में रहते हैं और गर्मियों में केदारनाथ क्षेत्र में वापस आते हैं." ग्रामीण विकास और पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने कहा, "जब आपदा आती है, तो यह बहुत स्वाभाविक है कि लोग मैदानी इलाकों में पलायन के बारे में सोच सकते हैं." नेगी ने कहा, "हालांकि प्रवास के कई कारण हैं, आपदाएं भी एक कारण हैं." नेगी और अन्य शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने स्वीकार किया कि विभिन्न आपदाओं के मद्देनजर पहाड़ियों से पलायन करने वाले लोगों की संख्या पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है.
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उत्तरकाशी-1991 और चमोली -1999 में सैकड़ों लोग मारे गए थे.
प्राकृतिक आपदाएं केवल पहाड़ियों में बाढ़ तक ही सीमित नहीं हैं. भूकंप, जंगल की आग और भूस्खलन जैसी आपदाएं राज्य में नियमित अंतराल पर भारी पड़ती हैं. हाल के दिनों में आए दो विनाशकारी भूकंपों - उत्तरकाशी-1991 और चमोली -1999 में सैकड़ों लोग मारे गए थे. केदारनाथ में बाढ़ में, 5,000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई, जबकि हजारों घर और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे भी क्षतिग्रस्त हो गए. जाने-माने पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि उन्होंने 2010 में केंद्र सरकार को राज्य के ऋषिगंगा सहित जलविद्युत परियोजनाओं के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति चेतावनी देते हुए पत्र लिखा था. उन्होंने कहा, "अगर मेरी चेतावनी को गंभीरता से लिया जाता, तो ऐसी बड़ी तबाही से बचा जा सकता था."
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