देश की पहली दिव्यांग शूटर का छलका दर्द, आजीविका के लिए बेच रही चिप्स और स्नैक्स

उत्तराखंड की पैरा-शूटर दिलराज कौर के सितारे गर्दिश मे चल रहे हैं इन दिनों उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए देहरादून में चिप्स और स्नैक्स बेचना पड़ रहा है. न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि साल 2004 में उन्होंने शूटिंग शुरू की थी.

उत्तराखंड की पैरा-शूटर दिलराज कौर के सितारे गर्दिश मे चल रहे हैं इन दिनों उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए देहरादून में चिप्स और स्नैक्स बेचना पड़ रहा है. न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि साल 2004 में उन्होंने शूटिंग शुरू की थी.

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Ravindra Singh
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शूटर दिलराज कौर( Photo Credit : एएनआई ट्विटर)

उत्तराखंड की पैरा-शूटर दिलराज कौर के सितारे गर्दिश मे चल रहे हैं इन दिनों उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए देहरादून में चिप्स और स्नैक्स बेचना पड़ रहा है. न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि साल 2004 में उन्होंने शूटिंग शुरू की थी और नेशनल लेवल पर उन्होंने 28 गोल्ड मेडल जीते इसके अलावा उन्होंने 8 रजत और 3 कांस्य पदक भी जीते. उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भी मौका मिला था. लेकिन मौजूदा समय परिस्थियां खराब होने के बाद वो अपनी आजीविका चलाने के लिए देहरादून के एक पार्क के पास चिप्स और स्नैक्स बेचने के लिए मजबूर हो गई हैं.

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निशानेबाज दिलराज कौर ने बताया कि देहरादून में मेरे पिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. हाल में ही मेरे भाई का भी निधन हो गया. हम लोगों ने उनके इलाज के लिए बहुत सारा पैसा खर्च कर दिया और इस दौरान हम अपने जानने वालों से काफी रुपया कर्ज के तौर पर ले चुके थे. मैं और मेरी मां हम दोनों एक किराए के मकान में रहते हैं. मां की पेंशन से हम इस मकान के किराए का भुगतान करते हैं. आजीविका चलाने के लिए कुछ ज्यादा पैसों की जरूरत है जिसके लिए मैं देहरादून के इस पार्क में आने वाले लोगों को चिप्स और स्नैक्स बेचकर पूरा करने की कोशिश करती हूं.

निशानेबाज दिलराज कौर ने मीडिया से बातचीत में आगे बताया कि हर महीने की 20 तारीख के बाद, हमारे पास पैसे नहीं बचते हैं. उन्होंने बताया कि, मैंने कई बार सरकारी अधिकारियों से शिक्षा और खेल में अपनी योग्यता के में बताया और एक अदद नौकरी का अनुरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. दिलराज कौर ने अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि जब मैदान में खिलाड़ी मेडल जीतते हैं तो देश के लोगों को गर्व होता है और वो ताली बजाकर हमारा उत्साह बढ़ाते हैं लेकिन ये कोई नहीं पूछता है कि वो अपना घर कैसे चलाते हैं.  

आपको बता दें कि दून निवासी दिलराज कौर भले ही पैरों से दिव्यांग हैं लेकिन निशानेबाजी के मामले में उनका अचूक निशाना ही उनकी पहचान है. दिलराज ने  ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान शूटिंग शुरू की थी. बाद में इस शौक को उन्होंने आगे बढ़ाते हुए अपने करियर की तलाश की. 

Source : News Nation Bureau

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