जानिए आज तक ऋषि गंगा प्रोजेक्ट कभी पूरा क्यों नहीं हो पाया, क्या है इसका रहस्य
ऋषि गंगा प्रोजेक्ट पर काम कर रहे दर्जनों लोग लापता हैं. इस प्रोजेक्ट को लेकर पहले भी विरोध होता रहा है. आइए जानते हैं ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के बारे में, जो आज तक कभी पूरा नहीं हो पाया.
चमोली :
उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी को नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से बड़ी तबाही आयी थी. रहत बचाव कार्य अभी भी जारी है. ग्लेशियर टूटने से ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को काफ़ी नुकसान पहुंचा है. उत्तराखंड के चमोली में है नंदा देवी पर्वत. पास में ही ऋषि गंगा नदी है जो धौलीगंगा से मिल रही है. इसको तपोवन रैणी क्षेत्र भी कहा जाता है. यहीं अलकनंदा नदी की ऊपरी धारा पर ऋषि गंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना है. ऋषि गंगा प्रोजेक्ट पर काम कर रहे दर्जनों लोग लापता हैं. इस प्रोजेक्ट को लेकर पहले भी विरोध होता रहा है. आइए जानते हैं ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के बारे में, जो आज तक कभी पूरा नहीं हो पाया.
ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट करीब 13 मेगावॉट का है. नंदा देवी ग्लेशियर का हिस्सा टूटने से आई बाढ़ का सबसे पहले असर इसी प्रोजेक्ट पर हुआ. ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के साथ ही तपोवन (520 मेगावॉट), पीपल कोटी (4*111 मेगावॉट) और विष्णुप्रयाग (400 मेगावॉट) प्रोजेक्ट्स को भी नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के पहले मालिक कमल सुराना दिवालिया हो गए
सबसे पहले साल 1996 में कोलकाता के बिल्डर कमल सुराना ने ऋषि गंगा पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की स्थापना की थी. कमला सुराना ने ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन ख़रीदी और सभी तरह के क्लियरेंस हासिल किये। उस समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था. उस समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं. साल 2000 में ऋषि गंगा प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी गयी. कमल सुराना के पास पावर प्लांट का कोई अनुभव नहीं था , इसलिए अगले कई सालों तक काम शुरू ही नहीं हो सका. कमल सुराना ने प्रोजेक्ट से बैंक के लिए लोन लिया था , जिसे अदा करना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गयी. कमल सुराना की आर्थिक स्थिति भी खराब होने लगी , जिसके बाद सुराना ने प्रोजेक्ट को लुधियाना के राकेश मेहरा को बेच दिया.
ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के दूसरे मालिक की उद्घाटन के वक़्त मौत
कमल सुराना से प्रोजेक्ट खरीदने के बाद राकेश मेहरा इसे जल्द पूरा करना चाहते थे. कमल सुराना की ही तरह राकेश मेहरा के पास भी हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाने के पिछले कोई अनुभव नहीं था. मेहरा ने साल 2008 में पंजाब नेशनल बैंक से प्रोजेक्ट के लिए 39 करोड़ का लोन लिया था. शुरुआत में ये प्रोजेक्ट 8.25 MW का था , मेहरा ने इसे बढाकर 13.2 MW कर दिया. इस प्रोजेक्ट से अगले 21 सालों तक 13.2 MW बिजली का प्रोडक्शन तय हुआ. मेहरा ने प्रोजेक्ट लगभग पूरा कर भी लिया था. प्रोजेक्ट उद्घाटन के लिए 15 अगस्त 2011 की तारीख तय की गयी. राकेश मेहरा तय वक़्त पर प्रोजेक्ट साइट पर मौजूद थे, तभी उद्घाटन से पहले अचानक उनके सिर पर एक पत्थर आ गिरा. सिर पर गहरी चोट लगने से राकेश मेहरा की मौके पर ही मौत हो गयी. राकेश मेहरा के साथ खड़े दूसरे लोगों को ख़रोच तक नहीं आयी.
मेहरा की अचानक हुई इस मौत के बाद बिज़नेस कंट्रोल को लेकर उनके परिवार में भी विवाद शुरू हो गया. प्रोजेक्ट के लिए 39 करोड़ रूपये का लोन 2013 तक बढ़कर 66 करोड़ हो गया. फरवरी 2016 में बैंक ने इस लोन को एनपीए घोषित कर दिया. मामला National Company Law Tribunal (NCLT) में पहुंचा. 2018 में इस प्रोजेक्ट को कुंदन ग्रुप ने टेकओवर कर लिया.
तीसरे मालिक कुंदन ग्रुप को बड़ा नुकसान
2018 में प्रोजेक्ट को टेकओवर करने के बाद कुंदन ग्रुप ने नए सिरे से इसे आगे बढ़ाया. प्रोजेक्ट वाली जगह से लगे रैणी गांव के लोगों में इस प्रोजेक्ट को लेकर डर हमेशा बना रहा. कहा जाता है की प्रोजेक्ट के काम के चलते छह महीने पहले कंपनी ने रैणी गांव में देवी का एक मंदिर तोड़ दिया था. गांव के कई लोग कहते हैं कि ऋषिगंगा में अभी आई बाढ़ उसी का नतीजा है. 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटा और प्रोजेक्ट तबाह हो गया.
नंदा देवी
ऋषि गंगा प्रोजेक्ट नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान से लगा क्षेत्र है. NESCO ने नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया हुआ है. समूचे पर्वतीय क्षेत्र में हिमालय की पुत्री नंदा का बड़ा सम्मान है. उत्तराखंड में भी नंदादेवी के अनेकानेक मंदिर हैं. यहाँ की अनेक नदियाँ , पर्वत श्रंखलायें , पहाड़ और नगर नंदा के नाम पर है.
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