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Exclusive: जिस झील को बताया जा रहा है तबाही का कारण, उसकी असली सच्चाई ये है

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल्स में केदारनाथ धाम के ऊपर चोराबारी ग्लेशियर में एक नई झील के होने की खबरें चलाई जा रही हैं.हम आपको बता रहे हैं उसकी सच्चाई क्या है।

Updated on: 28 Jun 2019, 06:13 PM

highlights

  • 2013 में केदार घाटी में आई थी भारी तबही
  • ग्लेशियर को लेकर अफवाह यह थी कि इससे तबाही मचेगी
  • विशेषज्ञों ने कहा कि तबाही के हालात नहीं हैं

देहरादून:

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल्स में केदारनाथ धाम के ऊपर चोराबारी ग्लेशियर में एक नई झील के होने की खबरें चलाई जा रही हैं. यह तक कहा जा रहा है कि झील भविष्य में 2013 की प्राकृतिक आपदा की तरह ही मुसीबत का कारण बन सकती है. न्यूज़ स्टेट की टीम ने 14000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर बनी झील पर पहुंचकर एक्सक्लूसिव रिपोर्ट तैयार की है.

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16 जून 2013 में केदारघाटी में प्राकृतिक आपदा आई. जिस आपदा में हजारों लोग मारे गए और सैकड़ों बेघर हो गए. इसलिए जब भी इस आपदा का नाम जुबान पर आता है तो हर किसी का डर से सहम जाना लाजमी है. पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और तमाम न्यूज़ चैनल्स में इसी केदार केदारनाथ धाम से ऊपर 6 किलोमीटर की दूरी और 14000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर एक नई झील के निर्माण होने की खबरें चल रही है और दावा यहां पर किया जा रहा है कि झील टूटी तो साल 2013 की तरह भयंकर तबाही लेकर आएगी.

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दरअसल ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मेडिकल सेवाएं प्रदान करने वाली सिक्स सिगमा के टीम में सबसे पहले इन नई झीलों की तस्वीरें और वीडियो वायरल किए. जिसके बाद हर कोई इन्हें देखकर यही सोच रहा है कि क्या 2013 की तरह एक बार फिर से कोई बड़ी आपदा आ सकती है. ऐसे में न्यूज़ नेशन के टीम ने जनता को हर हकीकत बताने के लिए इस क्षेत्र में पहुंचने की शुरुआत की.

चोराबारी ग्लेशियर मैं ही इन नई झीलों के बनने की बात कही जा रही है. इन झीलों की हकीकत जानने के लिए वाडिया भूगर्भ संस्थान देहरादून के ग्लेशियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ डीपी डोभाल भी मॉनिटरिंग के लिए पहुंचे थे. क्योंकि लोगों में जिस तरह का भय बन चुका था उसे दूर करना जरूरी था और ग्लेशियर विशेषज्ञ ही यह बता सकते हैं कि आखिरकार यह झील कितनी खतरनाक है.

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स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स यानी एसडीआरएफ और वाडिया भूगर्भ संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम के साथ अब हम केदारनाथ से चौराबाड़ी ग्लेशियर की ओर अपना सफर शुरू कर चुके थे. चोराबारी ग्लेशियर में जहां हमें पहुंचना था वह क्षेत्र करीब 6 किलोमीटर दूर और 14000 फीट से ज्यादा ऊंचाई वाला हाय एल्टीट्यूड क्षेत्र था.

हमें ग्लेशियर की और गाइड करने के लिए और पूरे रास्ते की जानकारी देने के लिए एसडीआरएफ के 2 टीम मेंबर लक्ष्मण सिंह बिष्ट और विनीत रावत भी हमारे साथ थे जिनसे हमने पूछा कि आखिरकार यह क्षेत्र कितनी चुनौतियां और मुश्किलों भरा है. इसी बीच वाडिया भूगर्भ संस्थान के ग्लेशियर विशेषज्ञ डॉक्टर डीपी डोभाल भी पहुंच चुके थे जिन्होंने बताया की शुरुआत के वीडियो और फोटो देखकर नहीं लगता कि कोई खतरे वाली बात है यह रूटीन ग्लेशियल लेक नजर आ रही हैं लेकिन फिर भी जिस तरह से प्रशासन और जनता चिंता कर रही है तो वह रिसर्च के लिए और मॉनिटरिंग के लिए ग्लेशियर की ओर जा रहे हैं.

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उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जब आप ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में जाते हैं तो कई बार हजारों के झुंड में भेड़ बकरियां नजर आती हैं जो बहुत खास इसलिए हैं क्योंकि यहां इनके चरवाहे इन्हें 6 महीनों के लिए लाते हैं और 6 महीने बाद जब बर्फ ज्यादा हो जाती है तो वह निचले स्थानों पर इन्हें लेकर चले जाते हैं.

चोराबारी ग्लेशियर में केदारनाथ धाम मंदिर से 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर चोरा बड़ी झील यानी गांधी सरोवर झील है जिसके टूटने से 2013 में केदार घाटी की प्राकृतिक आपदा आई थी. अपने इस सफर में नई झीलों के साथ हम आपको 2013 की आपदा का कारण बनी गांधी सरोवर झील भी दिखाएंगे कि आखिरकार कैसे 2013 में यह पूरी तबाही मची थी.

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चोराबारी ग्लेशियर को जाने का रास्ता बहुत संकरा है अधिक ऊंचाई होने के साथ-साथ आपको हर कदम बड़ी होशियारी और सूझबूझ के साथ रखना होता है क्योंकि आपका एक गलत कदम आपको सैकड़ों फीट गहरी खाई में धकेल सकता है या फिर आप ग्लेशियर में बनी दरारों में फंस सकते हैं.

हिमालई क्षेत्रों में मौसम में हो रहे बदलाव ग्लेशियर के मूवमेंट और तापमान मैं कमी और बदलाव पर नजर रखने के लिए वाडिया भूगर्व संस्थान ने चौराबाड़ी ग्लेशियर में दो हाईटेक वेदर स्टेशन बनाए हैं. अपने सफ़र में हम वाडिया भूगर्व संस्थान के मौसम स्टेशन के पास पहुंचे.

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इस दौरान हमें डाक्टर डीपी डोभाल से पूछा कि आखिरकार यह वैसे स्टेशन कैसे काम करता है और क्या-क्या जानकारियां यहां से कलेक्ट होती है. डॉ डोभाल ने जानकारी दी कि इस वेदर स्टेशन से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जानकारियां जुटाई जाती हैं.

छोटी झील से करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद अब हम बड़ी झील की ओर अपना सफर तय कर रहे थे. हमें उस झील की तलाश थी जिससे भविष्य में आपदा आने का खतरा बताया जा रहा है. थोड़ी ही देर में हम उस झील के पास भी पहुंच गए.

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यहां वाडिया भूगर्भ संस्थान के वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल अपनी टीम के साथ झील और ग्लेशियर्स की मांटिरिंग कर रहे थे. झील की गहराई नापने के लिए वो मेन्युवल और क्षेत्र की टोपो ग्राफी के लिए जीपीएस से पोजीशनिंग पता कर रहे थे.

मीडिया में इन दिनों इस झील को लेकर काफी सनसनीखेज खबरें चलाई जा रही हैं. लेकिन न्यूज़ नेशन जनता को सही और विश्वसनीय खबर दिखाने के लिए इस दुर्गम रास्ते में समुद्र तल से करीब 14000 फीट की हाइट पर हाई एल्टीट्यूड क्षेत्र में रिपोर्टिंग करने पहुंचा था.

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डॉक्टर डोभाल ने जानकारी देते हुए बताया कि झील के किनारे जो ग्लेशियर हैं वह जमीन से 30 मीटर गहराई तक है और करीब आठ से 10 मीटर चौड़ा है. जिस झील की हम बात कर रहे हैं उसे सुप्रा ग्लेशियर लेक कहा जाता है. यह एक नॉर्मल प्रोसेस है जो ग्लेशियर की स्टडी में अक्सर दिखाई देती.

ऐसी झीलें 1 से 2 सालों में सूख जाती हैं. जिन लोगों ने इस तरह के वीडियो भविष्य में आपदा का कारण बताते हुए रिलीज किए हैं उन्हें ग्लेशियर साइंस की जानकारी नहीं है. झील के किनारे जो ग्लेशियर है वह काफी मोटा और उसकी दीवार काफी मजबूत है जिससे पानी को तोड़ना असंभव है.

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केदारनाथ मंदिर से इसकी दूरी करीब 6 किलोमीटर है जिसके चलते इससे पानी की निकासी होने के बाद भी किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. करीब 1 से 2 साल बाद ग्लेशियर पिघलने पर यह झील भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. डॉक्टर डोभाल ने यह भी कहा कि वाडिया भूगर्भ संस्थान की टीम इस झील को लगातार मॉनिटर भी करती रहेगी और प्रशासन से भी कहा जाएगा कि इस पर नजर रखें.

जिस झील को लेकर अफरातफरी का माहौल बनाया जा रहा है. जिसे आपदा का कारण बताया जा रहा है. ऐसी झील को ग्लेशियर एक्सपर्ट किसी तरह का खतरा नहीं बता रहे हैं उनका कहना है कि ऐसी झील किसी तरह का खतरा नहीं है और यह ग्लेशियर की रूटीन प्रोसेस है.