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पिथौरागढ़ में लोग बर्फ के कारण अपने घरों को छोड़ देते हैं।( Photo Credit : News State)
सर्दी और गर्मी में अलग-अलग राजधानी के बारे में आपने जरूर सुना होगा. लेकिन उत्तराखंड के कई जगहों पर लोगों ने इसी तर्ज दो-दो घर बनाए हुए हैं. इसके पीछे का कारण सर्दी है. एक घर सर्दी के लिए है. वहीं दूसरा घर गर्मी के लिए है. गर्मियों वाले घर कैलाश मानसरोवर के रास्ते में पड़ने वाली व्यास घाटी के साथ-साथ जोहर और धर्मा पहाड़ियों पर हैं.
वही सर्दियों वाले घर 100-150 किलोमीटर दूर निचले इलाकों में धारचूला, जौलजीबी, डिडिहाट और थल में हैं. गर्मियों वाले घर पहाड़ी के ऊपर हैं. जहां नवंबर से लगातार बर्फबारी हो रही है. 5-6 फीट तक बर्फबारी होने के कारण यह गांव गाखी होने की कगार पर पहुंच गए हैं.
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यहां रहने वाले करीब 20 हजार लोग 100-150 किमी दूर निचले इलाकों में धारचूला, जौलजीबी, डिडिहाट और थल में हैं. जानकारी के मुताबिक ये लोग अपने घर से जाने से पहले खेतों में खाद डालते हैं और घरों के दरवाजों को पॉलीथिन से पैक कर देते हैं. इन इलाकों में फाफड़, जौ, मटर और राजमा की खेती की जाती है. निचले इलाकों में इन लोगों ने अपने रिश्तेदारों के करीब में ही घर बना रखे हैं.
अपने प्रवास के दौरान ये लोग अस्थाई तौर पर छोटी-मोटी नौकरी करते हैं. चूंकि ये लोग हर साल आते हैं, इसलिए इन्हें काम आसानी से मिल जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि माइग्रेट होने के कारण इन लोगों पर भरोसा रहता है. इस लिए काम आसानी से मिल जाता है. साथ ही इनके आने से क्षेत्र की आबादी बढ़ जाती है. जिससे व्यापार करीब 10-15 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. अप्रैल में ये लोग फिर से ऊपरी इलाकों में लौट जाएंगे.
और क्या है खास
- अक्टूबर में ये लोग पहाड़ी रास्ते से पैदल निचले इलाकों में जाते हैं. दोनों ही घरों में गृहस्थी का पूरा सामान रहता है. इसलिए ये लोग अपने साथ ज्यादा सामान नहीं ले जाते.
- शादियों के लिए मौसम के मुताबिक घर का पता दिया जाता है.
- इन्हें मौसम के हिसाब से ऊपरी और निचले इलाके में वोटिंग की सुविधा मिलती है.
- बच्चों की पढ़ाई भी दो हिस्सों में होती है. छह महीने पहाड़ों के ऊपर और छह महीने निचले इलाकों में पढ़ाई होती है.