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भारत का सबसे अनोखा त्योहार 'बटर फेस्टिवल', 13000 फीट की ऊंचाई पर खेली जाती है दूध-छाछ की होली

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य जहां प्रकृति और देवताओं को कई सारे त्यौहार समर्पित हैं. उत्तराखंड में ऋतुओं और मौसम के आधार पर भी कई सारे त्यौहार मनाए जाते हैं. ऐसा ही एक अनोखा और प्रकृति को समर्पित त्यौहार है.

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Dalchand Kumar
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भारत का सबसे अनोखा त्योहार 'बटर फेस्टिवल', 13000 फीट की ऊंचाई पर खेली जाती है दूध-छाछ की होली

फाइल फोटो

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उत्तराखंड एक ऐसा राज्य जहां प्रकृति और देवताओं को कई सारे त्यौहार समर्पित हैं. उत्तराखंड में ऋतुओं और मौसम के आधार पर भी कई सारे त्यौहार मनाए जाते हैं. ऐसा ही एक अनोखा और प्रकृति को समर्पित त्यौहार है. भारत में सबसे अनोखा और दिलचस्प त्यौहार है बटर फेस्टिवल, जो 13000 फीट की ऊंचाई पर मनाया जाता है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल मनाया जाता है. उत्तरकाशी जिले के रैथल क्षेत्र के अंतर्गत दयारा बुग्याल स्थित है. बटर फेस्टिवल को स्थानीय भाषा में अंडूडी कहा जाता है. यह त्योहार पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है.

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इस त्यौहार में स्थानीय लोग प्रकृति और अपने देवता का पूजन करते हैं. समुद्र तल से करीब 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में इस त्यौहार को धूमधाम से मनाया जाता है. रैथल और उसके आसपास के स्थानीय लोग बुग्यालों के निचले क्षेत्र में अपने दुधारू पशुओं को चुगान के लिए ले जाते हैं.  अंडूडी यानी बटर फेस्टिवल को मनाने की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो जाती हैं. समुद्र तल से करीब 13000 फिट की ऊंचाई पर मनाया जाने वाला यह त्योहार देश में अनोखा है, क्योंकि इस त्यौहार में लोग एक दूसरे को बटर लगाकर शुभकामनाएं देते हैं. इस त्यौहार में होली की तरह पिचकारी छोड़ी जाती है, लेकिन रंग की नहीं बल्कि दूध और छाछ की. बटर फेस्टिवल का आनंद लेने के लिए दयारा बुग्याल पहुंचने वाले हर पर्यटक यहां स्थानीय इन लोगों के साथ बिल्कुल रम जाते हैं.

देवता की पूजा के साथ ही इस त्यौहार की शुरुआत हो जाती है. इस त्यौहार में सबसे पहले ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, क्योंकि इंद्र के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था. गोवर्धन पर्वत को ग्वालों का सहायक कहा जाता है, ऐसे में यह सभी लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और भगवान का आभार जताते हैं. गोवर्धन पर्वत की पूजा के बाद इष्ट देवता और वन देवियों की पूजा की जाती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां इष्ट देवता की कृपा से ही दुधारू पशु स्वस्थ और फल फूलते हैं. स्थानीय लोग प्रकृति और इष्ट देवता की पूजा के साथ ही इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं.

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बटर फेस्टिवल में राधा और कृष्ण के प्रतीक के तौर पर एक युवती और युवक को राधा कृष्ण बनाया जाता है, जो मुख्य गेट पर लगे मखन की मटकी को तोड़कर इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं. मटकी टूटते ही सभी लोग एक दूसरे पर पिचकारी से दूध और छाछ डालते नजर आते हैं. लोग एक दूसरे को गालों पर बटन लगाते हैं. हरे-भरे बुग्याल में बहुत शानदार तरीके से बटर फेस्टिवल मनाते लोग नजर आते हैं. महिलाएं एक दूसरे को बटर लगाती हुई नजर आती हैं. इस त्यौहार का सीधा सा मतलब यह है कि प्रकृति के द्वारा दुधारू पशुओं को जो आहार मिलता है. उसका धन्यवाद स्थानीय लोग यहां इस त्यौहार के जरिए करते हैं. महिलाओं का कहना है इस त्यौहार की शुरुआत चंद्र सिंह राणा जी ने की थी, पहले यह सिर्फ गौशालाओं में ही मनाया जाता था. लेकिन अब इसे दयारा बुग्याल में मना कर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है.

उत्तराखंड के सभी क्षेत्रों में अलग-अलग सांस्कृतिक परिवेश और नृत्य हैं. जिस तरह कुमाऊं और गढ़वाल में छोलिया, छपेली , चांचडी और छबेली नृत्य हैं. उसी तरह रवाई जोन सार क्षेत्र में रासु नृत्य प्रसिद्ध नृत्य है. बटर फेस्टिवल मनाते पुरुष और महिलाएं आपको रासु नृत्य करती नजर आती हैं. इस नृत्य में हर कोई शामिल हो जाता है चाहे पर्यटक हैं या फिर स्थानीय लोग. रासु नृत्य में झूमते गाते लोगों को देखकर हर कोई उनके साथ नृत्य में डूब जाता है. वहीं बटर फेस्टिबल के आयोजक मनोज राणा बताते हैं कि प्रिय त्योहार सिर्फ देवता के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति के लिए भी मनाया जाता है, क्योंकि इस त्यौहार के बाद से सभी पशुपालक निचले स्थानों की ओर जाना शुरू कर देते हैं. बुग्यालों में ठंड ज्यादा होने लगती है और ऐसे में लोग अपने गांव और घरों की ओर रुख करने लगते हैं.

बटर फेस्टिवल के इस त्यौहार के मौके पर प्रतिभाग करने आए कलाकारों का कहना है कि अपनी संस्कृति को बचाना और आगे बढ़ाना हर किसी का कर्तव्य है. बटर फेस्टिवल में जिस तरह सभी आयु वर्ग के लोग भाग ले रहे हैं. वह इस संस्कृति के लिए बहुत बेहतर है और इसी तरह पर्यटक भी बड़े पैमाने पर दयारा बुग्याल की ओर रुख करेंगे. स्थानीय लोगों का कहना है कि साल भर उनके दुधारू पशु इन बुग्यालों में चुगान करते हैं और देवता ही उनके जानवरों की रक्षा करते हैं. इसलिए वे देवता का आह्वान करके देवता को यह सभी दुग्ध पदार्थ समर्पित करते हैं. हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को इस त्यौहार को और ज्यादा प्रचार और प्रसार देने की जरूरत है, क्योंकि अभी सरकार और प्रशासन के तौर पर इसमें ज्यादा सहायता नहीं की जा रही है.

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वैसे उत्तराखंड में पौराणिक काल से ही मेलों और त्यौहारों का बड़ा महत्व रहा है. जब मनोरंजन के लिए आधुनिक संसाधन नहीं थे, तब इन्हीं मेलों और त्यौहारों के जरिए लोग एक दूसरे से संपर्क किया करते थे. उत्तराखंड में प्रसिद्ध पिथौरागढ़ का जौलजीबी मेला, बागेश्वर का उत्तरायणी मेला और गोचर का गोचर मेला प्रमुख हैं. कई सालों पहले इन मेलों के जरिए ही लोग अपना मनोरंजन किया करते थे और अपने सगे संबंधियों से मेलों के दौरान ही मुलाकात किया करते थे. इसी तरह बटर फेस्टिवल में भी लोग 13 हजार फीट की हाइट पर इस दयारा बुग्याल में अपने परिजनों और सगे संबंधियों से मिलने और उन्हें त्यौहार की बधाई देने पहुंचते हैं.

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