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शिक्षा मंत्रालय की पहल से काशी तमिल समागम में जगमगाया वाराणसी

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित काशी तमिल समागम में हजारों दीप जलाकर तमिलनाडु का कार्तिका दीपम पर्व वाराणसी में मनाया गया. इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ज्ञान और ज्ञान का यह प्रकाश सभी अंधकार को दूर करे. ये पवित्र ज्योतियां एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को आगे बढ़ाएंगी. रोशनी का यह पवित्र त्योहार तमिलनाडु के सबसे सम्मानित स्थानों में से एक, तिरुवन्नामलाई में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.

Updated on: 07 Dec 2022, 02:51 PM

नई दिल्ली:

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित काशी तमिल समागम में हजारों दीप जलाकर तमिलनाडु का कार्तिका दीपम पर्व वाराणसी में मनाया गया. इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ज्ञान और ज्ञान का यह प्रकाश सभी अंधकार को दूर करे. ये पवित्र ज्योतियां एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को आगे बढ़ाएंगी. रोशनी का यह पवित्र त्योहार तमिलनाडु के सबसे सम्मानित स्थानों में से एक, तिरुवन्नामलाई में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. 

गौरतलब है कि इस दौरान हजारों दीयों की एक बड़ी श्रृंखला को ओम के आकार में सजाया गया. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ओम ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है. ओम अनंत शक्ति का प्रतीक है. ओम शिवमय काशी और तमिलनाडु की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता की अभिव्यक्ति है.

दक्षिण भारत खासतौर पर तमिलनाडु में मनाए जाने वाला प्रकाश का प्रसिद्ध पर्व कार्तिका दीपम केंद्रीय विश्वविद्यालय, बीएचयू परिसर में भी मनाया गया. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित काशी तमिल समागम के तहत यह खास पहल की गई है. इसके अंतर्गत बीएचयू परिसर में हजारों दीये जगमगाए. कार्यक्रम स्थल को बीएचयू के छात्रों और तमिलनाडु से आए अतिथियों द्वारा सजाया गया है.

कार्तिका दीपम रोशनी का एक त्योहार है जो मुख्य रूप से हिंदू तमिलों द्वारा मनाया जाता है और केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और श्रीलंका के क्षेत्रों में भी मनाया जाता है. कार्तिका दीपम प्राचीन काल से तमिलनाडु में मनाया जाता रहा है. यह तमिल कैलेंडर में विषुवों के सुधार के कारण एक खास दिन पड़ता है.

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा काशी तमिल समागम का आयोजन 17 नवंबर से 16 दिसंबर, 2022 तक वाराणसी (काशी) में किया जा रहा है. इसका उद्देश्य तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों को फिर से खोजना है.

सैकड़ों वर्ष पुरानी ऐतिहासिक पुस्तकों में रुचि रखने वाले पुस्तक प्रेमियों के लिए भी केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित काशी तमिल समागम एक बेहतरीन स्थान है. पुरानी पुस्तकें और उनसे भी बढ़कर ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों यहां देखने को मिल सकती हैं. इतना ही नहीं यहां केंद्रीय पुस्तकालय में 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में तमिल ग्रंथ लिपि को भी रखा गया है.

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के केन्द्रीय पुस्तकालय ने 1890 के बाद से विभिन्न तमिल ग्रंथों और 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में तमिल ग्रंथ लिपि में लिखी गई 12 पांडुलिपियों को प्रदर्शित किया है. इनमें शुरूआती तमिल नाटकों की पहली प्रतियां और एनी बेसेंट को उपहार में दी गई किताबें, तमिल संगीत तकनीकों की व्याख्या करने वाली किताब, कुमारगुरुबारा की किताबें, शैव दर्शन से संबंधित किताबें, भारती किताबें, रामायण, महाभारत के अनुवाद आदि शामिल हैं.

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