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Allahabad HC ने पूछा, जातीय रैलियों पर क्यों न लगा दी जाए पाबंदी?

Why not ban caste rallies forever, asks Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने राजनीतिक दलों की रैलियों पर हमेशा के लिए रोक लगाने की बात कही है. हाई कोर्ट ने चार पक्षों को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न जाति आधारित रैलियों...

Updated on: 05 Dec 2022, 12:36 PM

highlights

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी
  • राजनीतिक दलों समेत किसी पक्ष ने नहीं दिया जवाब
  • फिर से नोटिस जारी, 15 दिसंबर तक का दिया समय

प्रयागराज:

Why not ban caste rallies forever, asks Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने राजनीतिक दलों की रैलियों पर हमेशा के लिए रोक लगाने की बात कही है. हाई कोर्ट ने चार पक्षों को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए. इस रोक का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ चुनाव आयोग को कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर दिये जाए. दरअसल, हाई कोर्ट ने 9 साल पहले इस तरह का आदेश पारित किया था, लेकिन उस अंतरिम आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई, जिसके बाद हाई कोर्ट ने नए नोटिस जारी किये हैं. इस मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त को भी नोटिस जारी किया गया है.

साल 2013 में जारी किया था आदेश

हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने चार प्रमुख राजनीतिक दलों को भी नोटिस जारी किया है. इस मामले में चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जसप्रीत सिंह की पीठ ने वकील मोतीलाल यादव की ओर से दायर पीआईएल पर आदेश पारित किया, जिसमें उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. अब हाई कोर्ट ने मामले बेंच ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 15 दिसंबर की तारीख तय कर दी है. बता दें कि इसी पीआईएल में साल 2013 की 11 जुलाई को हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिये थे. लेकिन इस आदेश का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है.

15 दिसंबर तक का दिया समय

यही नहीं, हाई कोर्ट ने राजनीतिक दलों और मुख्य चुनाव आयुक्त को जो नोटिस जारी किये गए थे, उसका किसी पक्ष ने जवाब देना भी उचित नहीं समझा. जबकि इस बाते के 9 साल से अधिक समय बीत चुका है. यही वजह है कि अब हाई कोर्ट ने मामले पर चिंता जताते हुए सभी पक्षों को जवाब देने के लिए 15 दिसंबर तक का समय दिया है. पीआईएल दाखिल करने वाले व्यक्ति का कहना है कि इस तरह की गतिविधियां अलोकतांत्रिक हैं.