Mahakumbh 2025: महाकुंभ अमृत स्नान के बाद अब काशी में क्‍यों जा रहे सभी अखाड़े?

Varanasi: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जारी महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद अखाड़े अब वापसी करने की तैयारी कर रहे हैं. सभी महाशिवरात्रि तक गंगा घाट पर डेरा डालेंगे.

Varanasi: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जारी महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद अखाड़े अब वापसी करने की तैयारी कर रहे हैं. सभी महाशिवरात्रि तक गंगा घाट पर डेरा डालेंगे.

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Yashodhan.Sharma
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Varanasi akharas

Varanasi akharas Photograph: (social)

Varanasi: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ के बाद अब अखाड़ों, साधु, संत और अन्य पीठ के धर्माचार्य काशी पहुंचने वाले हैं. सभी महाशिवरात्रि तक गंगा घाट पर डेरा डालेंगे. इसके अलावा काशी में वह प्रमुख तिथियों पर भगवान विश्वनाथ का दर्शन करेंगे. साथ ही अखाड़े और नागाओं की तरफ से नगर में शोभायात्रा भी निकाली जाएगी, ऐसे में अखाड़े अभी से सजने लगे हैं. 

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सभी अखाड़े सज-धजकर तैयार

मिली जानकारी के अनुसार साधू-संतों का महाकुम्भ से काशी आने का सिलसिला शुरू हो रहा है. ऐसे में वाराणसी में जूना अखाड़ा सहित सभी अखाड़े सज-धज कर तैयार हो गए हैं. प्राचीन सनातन संस्कृति की परंपरा के अनुसार 12 साल में एक बार महाकुंभ का आयोजन होता है. इस दौरान प्रयागराज से काशी के लिए बसंत पंचमी के बाद से ही अलग-अलग अखाड़े, साधु संत धर्माचार्य काशी पहुंचते हैं. यहां उनके नाम से अधिकृत स्थल है, जहां पर वह महाशिवरात्रि तक रहते हैं और बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलकर वह यहां से प्रस्थान करते हैं. 

काशी में निरंजनी घाट, महानिरवानी घाट, जूना घाट जैसे काशी के घाट अखाड़े के नाम से हैं. इन स्थलों पर महाकुंभ से आने वाले साधु संत भगवान शिव की आराधना करते हैं. काशी में राजशाही परंपरा के तहत पेशवाई और शोभायात्रा भी निकाली जाती है. 

काशी तीर्थ के बिना महाकुंभ स्नान अधूरा

प्रयागराज महाकुंभ से 7 फरवरी को साधु-संत अखाड़े का जथा वाराणसी पहुंचना शुरू हो जाएगा. माना जाता है की बिना काशी यात्रा किये महाकुम्भ का भी पूर्ण फल नहीं मिलता है. इसके पीछे की कहानी भी बीएचयू के प्रोफेसर बताते हैं कि काशी के मणिकर्णिका तीर्थ में स्न्नान के बिना फल अधूरा रहता है.  दरअसल, तीर्थ क्षेत्र प्रयागराज से काशी धर्म स्थल सबसे नजदीक है और प्राचीन परंपरा के तहत महाकुंभ में बसंत पंचमी के बाद शुभ मुहूर्त से मां गंगा के तट पर बसे काशी में अलग-अलग अखाड़ा साधु संत लोग पहुंचते हैं.

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग होने के साथ साथ पौराणिक महत्व के आधार पर काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है और इन साधु संतों की भगवान शिव के प्रति अपार आस्था है. अखाड़ों पर काशी के अलग-अलग घाटों के नाम भी हैं. महाशिवरात्रि तक संत काशी में प्रवास करते हैं और भगवान विश्वनाथ के साथ होली खेलकर ही काशी से प्रस्थान करते हैं.  वाराणसी में अब पलट प्रवाह के साथ साधू संतों के आने का सिलसिला शुरू हो रहा है. 

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