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UP Vidhan Sabha Winter Session 2025: उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार शाम एक अहम राजनीतिक बैठक देखने को मिली. कुशीनगर से भाजपा विधायक पीएन पाठक (पंचानंद पाठक) के लखनऊ स्थित आवास पर ब्राह्मण विधायकों और एमएलसी की बड़ी बैठक आयोजित की गई. इस बैठक को ‘सहभोज’ नाम दिया गया, जिसमें करीब 40 जनप्रतिनिधियों के शामिल होने की जानकारी सामने आई है.
आयोजन के पीछे किनकी भूमिका
इस बैठक को आयोजित करने में मिर्जापुर से भाजपा विधायक रत्नाकर मिश्रा और विधान परिषद सदस्य उमेश द्विवेदी की प्रमुख भूमिका बताई जा रही है. खास बात यह रही कि बैठक में पत्रकार से विधायक बने शलभमणि त्रिपाठी भी शामिल हुए. हालांकि अब तक किसी भी विपक्षी दल के विधायक के इसमें शामिल होने की पुष्टि नहीं हुई है.
क्या रहा चर्चा का मुख्य विषय?
सूत्रों के मुताबिक बैठक का केंद्र बिंदु जातिगत राजनीति में ब्राह्मण समाज की घटती भूमिका रहा. चर्चा के दौरान यह चिंता जाहिर की गई कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में ब्राह्मणों की आवाज कमजोर न हो. उनके मुद्दों को अपेक्षित प्राथमिकता नहीं मिल पा रही है. इसी कारण समुदाय को राजनीतिक रूप से पीछे धकेले जाने की भावना उभर रही है.
पूर्वांचल और बुंदेलखंड का दबदबा
बैठक में शामिल अधिकांश विधायक पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्र से थे. कुल मिलाकर लगभग 40 विधायकों और एमएलसी की मौजूदगी ने इस बैठक को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया. इससे पहले ठाकुर विधायकों की बैठक ‘कुटुंब’ नाम से हो चुकी है, जिसने सियासी चर्चाओं को और तेज किया था.
बैठक में शामिल प्रमुख चेहरे
सहभोज बैठक में प्रेम नारायण पांडे, रत्नाकर मिश्रा, श्रीप्रकाश द्विवेदी, विनय द्विवेदी, एमएलसी साकेत मिश्रा, शलभमणि त्रिपाठी, विवेकानंद पांडे, ऋषि त्रिपाठी, रमेश मिश्रा, अंकुर राज तिवारी, राकेश गोस्वामी, कैलाश नाथ शुक्ला सहित कई अन्य विधायक मौजूद रहे.
कैबिनेट विस्तार से जोड़कर देखी जा रही बैठक
राजनीतिक गलियारों में इस बैठक को संभावित कैबिनेट विस्तार से जोड़कर देखा जा रहा है. इससे पहले ठाकुर, कुर्मी और लोध समुदाय के विधायकों की भी ऐसी बैठकें हो चुकी हैं. ऐसे में ब्राह्मण विधायकों का एक मंच पर आना न सिर्फ लखनऊ बल्कि दिल्ली के राजनीतिक सर्किल्स में भी चर्चा का विषय बन गया है.
सियासी संकेत क्या हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक संगठन और सरकार दोनों को एक संदेश देने की कोशिश है कि ब्राह्मण समाज अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व को लेकर सजग है. आने वाले दिनों में इसका असर सत्ता और संगठन की रणनीति पर पड़ सकता है.
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