यूपी गौ आयोग और पतंजलि ने मिलकर गौ संरक्षण का उठाया बीड़ा, 75 जिलों में बनेंगे मॉडल केंद्र

इसके तहत गौशालाओं को ग्रामीण उद्योग के केंद्रों में बदल दिया जाएगा. इससे पंचगव्य उत्पादों और बायोगैस का उत्पादन बढ़ेगा.

इसके तहत गौशालाओं को ग्रामीण उद्योग के केंद्रों में बदल दिया जाएगा. इससे पंचगव्य उत्पादों और बायोगैस का उत्पादन बढ़ेगा.

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Mohit Saxena
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cm yogi and baba ramdev

cm yogi and baba ramdev Photograph: (social media)

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग ने पतंजलि योगपीठ से मिलकर गौ संरक्षण का बीड़ा उठाया है. इसके साथ पंचगव्य उत्पाद, प्राकृतिक खेती और बायोगैस के विस्तार को पूरे प्रदेश में प्रोत्साहित करने का फैसला लिया गया है. प्रदेश के 75 जिलों में हर  2 से 10 गौशालाओं को बड़े मॉडल केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा. एक सरकारी प्रवक्ता ने रविवार को बताया, “गौ सेवा आयोग ने हाल ही में हरिद्वार में आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता, योगगुरु बाबा रामदेव और पतंजलि के सह-संस्थापक आचार्य बालकृष्ण के बीच हुई बातचीत के बाद पतंजलि योगपीठ के साथ साझेदारी की है.”

पंचगव्य उत्पाद और बायोगैस का उत्पादन किया जाएगा

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उन्होंने आगे कहा, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दृढ़ विश्वास है कि गांव की प्रगति की नींव गौ है. इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का प्रयास हो रहा है. पतंजलि योगपीठ ने राज्य की पहलों को पूर्ण तकनीकी सहयोग देने का संकल्प लिया है.” इस साझेदारी के मामले में गौशालाएं केवल संरक्षण केंद्र नहीं रहेंगी. उन्हें ग्रामीण उद्योग के केंद्रों के रूप में परिवर्तित किया जाएगा. यहां पंचगव्य उत्पाद और बायोगैस का उत्पादन किया जाएगा.

50 प्रतिशत का कमीशन मिलेगा

प्रदेश के 75 जिलों में 2 से 10 गौशालाओं को बड़े मॉडल केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा. गौ अभयारण्यों में खुले शेड, बाड़ और सुरक्षा व्यवस्था बनाई जाएगी. गौमाता का मुक्त विचरण सुनिश्चित हो सके. प्रवक्ता ने बताया, “इस पहल से बड़े पैमाने पर ग्रामीण रोजगार भी मिलेगा, जहां ग्रामीण सक्रिय रूप से गौमूत्र संग्रहण और उत्पादों की बिक्री में भाग लेंगे. इस प्रक्रिया में उन्हें 50 प्रतिशत का कमीशन मिलेगा. पतंजलि योगपीठ प्रशिक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण, फॉर्मूलेशन, प्रमाणन और लाइसेंसिंग के ज​रिए इस कार्यक्रम को और सहयोग देगा.”

इसके अलावा गौशालाओं में जियो-फेंसिंग, गाय टैगिंग, फोटो मैपिंग और चारे की सूची का ट्रैक रखने जैसी उन्नत तकनीकों को जोड़ा जाएगा. इसके साथ ही, नीम, गौमूत्र और वर्मी-कम्पोस्ट जैसे प्राकृतिक संसाधन हर गांव तक मौजूद कराए जाएंगे. इससे किसानों की लागत में कमी आएगी. इस तह से मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी. इसके साथ पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूती मिलेगी.

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