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राष्ट्रीय क्लीन गंगा मिशन की नाकामी पर हाईकोर्ट ने लगाई फटकार, सिर्फ पैसा बांटा जा रहा है

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले की सुनवाई करते हुए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खिलाफ तीखी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि यह मिशन केवल पैसा बांटने की मशीन रह गई है. पैसा कहां खर्च हो रहा है न तो निगरानी कर रही और न ही कोई हिसाब ले रही.

Updated on: 26 Sep 2022, 11:45 PM

नई दिल्ली:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले की सुनवाई करते हुए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खिलाफ तीखी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि यह मिशन केवल पैसा बांटने की मशीन रह गई है. पैसा कहां खर्च हो रहा है न तो निगरानी कर रही और न ही कोई हिसाब ले रही. हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर कोई काम दिखाई नहीं पड़ रहा. कराया जा रहा काम केवल आंखों को धोखा देने वाला है. मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एमके गुप्ता तथा न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पूर्ण पीठ जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए ये बातें कही. 

केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की तरफ से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि 2014-15 से 2021-22 के दौरान 11993.71 करोड़ विभिन्न विभागों को वितरित किए गए हैं. इसके साथ ही मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में निगरानी कमेटी गठित की गई है. प्रदेश में गंगा किनारे 13 शहरों में 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं. 7 शहरों में 15 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का प्रस्ताव है. 95 फीसदी सीवेज का शोधन किया जा रहा है. एनएमसीजी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम ग्रामीण एवं शहरी, नगर निगम प्रयागराज सहित कई विभागों की ओर से हलफनामे दाखिल किए गए . केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने रिपोर्ट पेश की.

लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की तैयारी
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि दोषी लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई है. लेकिन कोर्ट सरकार की इन दलीलों से संतुष्ट नहीं हुई. कोर्ट ने पूछा कि परियोजना पर कोई पर्यावरण इंजीनियर है या नहीं. बताया गया कि एनएमसीजी में काम कर रहे सारे अधिकारी पर्यावरण इंजीनियर ही हैं. उनकी सहमति के बिना कोई भी परियोजना पास नहीं होती है. इस पर कोर्ट ने पूछा कि परियोजनाओं की निगरानी कैसे करते हैं तो इसका साफ जवाब नहीं दिया गया. 

पीआईएल में ये की गई शिकायत
दरअसल, कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर शिकायत की गई कि कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज सहित अन्य शहरों के लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मानक के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं. सरकारी हलफनामे से इसकी पुष्टि होती दिखाई दी. कानपुर में सारे नाले खुले हैं. वाराणसी में दो नाले खुले हैं. जिससे नालों का पानी सीधे गंगा में गिर रहा है. सेंट्रल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की  रिपोर्ट में भी यही बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर एसटीपी ठीक से काम नहीं कर रही है और कुछ जो काम रहीं हैं, वो मानक के अनुसार नहीं है.

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कोर्ट ने पूछा कि  गंगा में गिर रहे नालों के शोधन के लिए बॉयोरेमिडयल विधि को अपनाने के लिए किसने कहा है. इसके जवाब में बताया गया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर यह विधि प्रयोग में लाई गई. तो कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश की जानकारी मांगी तो सेंट्रल प्रदूषण बोर्ड इसका कोई हवाला नहीं दे सका है. कोर्ट में प्रयागराज नगर निगम की ओर से बताया कि नालों की सफाई के लिए प्रतिमाह 44 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं. इस पर कोर्ट ने हैरानी जताई और कहा कि सालभर में करोड़ों खर्च हो रहे हैं, फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि उसको अब तक 332 शिकायतें मिली हैं. 48 में सजा हो चुकी है. बाकी के खिलाफ कार्रवाई प्रक्रिया में है.

इस पर कोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हलफनामे से पता चला कि कोर्ट के पिछले आदेश के बाद यूपी प्रदूषण बोर्ड ने कार्रवाई शुरू की है. कोर्ट ने कहा कि उसके कहने पर कार्रवाई की जा रही है. कोर्ट ने सभी विभागों को निर्देश दिया कि वे न्यायमित्र अरुण कुमार गुप्ता, याचिकाकर्ता वीसी श्रीवास्तव ,शैलेश सिंह सहित अन्य अधिवक्ताओं को हलफनामे की कापी उपलब्ध कराएं. याचिका की अगली सुनवाई एक नवंबर को होगी.