नहीं रहे राम मंदिर आंदोलन के नायक, जानें- राजनीतिक सफर से लेकर सरकार बलिदान तक की कहानी
कल्याण सिंह की गिनती राम मंदिर आंदोलन के उन नायकों में होती है जिन्होंने राम मंदिर के लिए सरकार बलिदान कर दी. वे भारतीय राजनीति में ऐसे नेता रहे हैं, जिन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद रामलला के मंदिर के लिए अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया.
highlights
- नहीं रहे राम मंदिर आंदोलन के नायक
- 89 साल की उम्र में ली आखिरी सांस
- कल्याण सिंह ने भाजपा को हाशिए से सत्ता के शिखर तक पहुंचाया
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Former Chief Minister of Uttar Pradesh Kalyan Singh) का शनिवार को लखनऊ में निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार थे. उन्होंने 89 साल की उम्र में लखनऊ (Lucknow) के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्था (SGPGI) में आखिरी सांस ली. वे दो बार उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुख्यमंत्री रहे और राज्यपाल (GOVERNOR भी रहे. कल्याण सिंह की गिनती भाजपा में ऐसे नेताओं में की जाती है जिन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा को हाशिए से सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया था.
कल्याण सिंह का सियासी सफर
कल्याण सिंह की राजनीतिक सियासी की शुरुआत दरअसल 1967 में हुई. वे इसी साल उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद वो सन 80 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने रहे. मुख्यमंत्री के रूप में राम मंदिर आंदोलन के नायक कहे जाने वाले कल्याण सिंह का कार्यकाल जून 1991 से दिसंबर 1992 तक रहा. महज डेढ़ साल के कार्यकाल में ही कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में विकास कामों को गति देकर प्रदेश के लोगों के दिलों में जगह बना ली. कल्याण सिंह की बढ़ती लोकप्रियता ने 1997 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा को फिर से जीवित कर दिया. उन्होंने सितंबर 1997 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में पदभार संभाला. सितंबर 1997 से फरवरी 1998 तक वो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के रुप में कार्यरत रहे. सियासी उतार चढ़ाव के बीच इस बार उनकी सरकार मात्र 5 महीने तक ही चल पाई. तीसरी बार वे 1998 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए. इस दौरान उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री फरवरी 1998 से नवंबर 1999 तक उत्तर प्रदेश का नेतृत्व किया.
सरकार बलिदान करने वाला नायक
कल्याण सिंह की गिनती राम मंदिर आंदोलन के उन नायकों में होती है जिन्होंने राम मंदिर के लिए सरकार बलिदान कर दिया. वे भारतीय राजनीति में ऐसे नेता रहे हैं, जिन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद रामलला के मंदिर के लिए अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया. 1991 विधानसभा चुनाव में भाजपा को 57 से 221 सीटों तक पहुंचाकर उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा को हाशिए से सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया.
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