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गोरखनाथ मंदिर पर कोरोना वायरस (Corona Virus) का साया, बंद किए गए कपाट

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को देर रात इसकी घोषणा की. शनिवार को इस पर प्रभावी तरीके से अमल भी शुरू हो गया. तस्वीरें इसकी सबूत हैं.

Updated on: 21 Mar 2020, 03:39 PM

गोरखपुर:

देश के बड़े संत समाज के संप्रदायों में से एक गोरखपुर (Gorakhpur) स्थित नाथपंथ का मुख्यालय, कभी किसी ने वहां इस तरह के दृश्य के बारे में न सोचा होगा और न देखा होगा. आक्रांता मुगलों का कार्यकाल इसका अपवाद है. लेकिन यह सब हुआ है आम लोगों के व्यापक हित के लिए, ताकि कोरोना के संक्रमण से लोग और उनका परिवार सुरक्षित रहे. जिस गोरखनाथ मंदिर के कपाट मुगल आक्रान्ताओं से लड़ते हुए भी बंद ना हुए, उन्हें अब जनहित के लिए बंद किया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने शुक्रवार को देर रात इसकी घोषणा की. शनिवार को इस पर प्रभावी तरीके से अमल भी शुरू हो गया. तस्वीरें इसकी सबूत हैं.

दरअसल, जनकल्याण गोरखपीठ की परंपरा रही है. शुरू से ही पीठ की सोच समय से आगे की ही रही है. सनद रहे कि आजादी के पहले जब पूर्वांचल शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा था तब वहां के तबके पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ ने महाराणा शिक्षा परिषद की स्थापना कर शिक्षा की ज्योति जगाई. आज परिषद के बैनर तले हर तरह के चार दर्जन से अधिक शैक्षणिक संस्थान चल रहे हैं. गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी पीठ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

आम लोगों को सस्ते में अत्याधुनिक चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए गोरखनाथ चिकित्सालय की स्थापना से लेकर वनटांगियां गांवों का कायाकल्प, जोखिम लेकर बाढ़ पीड़ितों को राहत, आगजनी या प्राकृतिक आपदा से शिकार किसानों की मदद और जनहित के अन्य काम इसके उदाहरण हैं. गोरखनाथ मंदिर और इससे संबंधित शक्ति पीठ देवीपाटन बलरामपुर की बंदी और शनिवार को कोरोना के मद्देनजर गरीबों के लिए की गयी घोषणाओं के पीछे भी जनकल्याण की वही सोच है. मालूम हो कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं.

त्रेता युग में हुई थी गोरखनाथ मंदिर की स्थापना
किदंवतियों के अनुसार, गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर की स्थापना त्रेता युग में सिद्ध गुरु गोरक्षनाथ ने की थी. मान्यता के मुताबिक उस समय गुरु गोरखनाथ भिक्षाटन करते हुए हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर गए. वहां देवी ने उनको भोजन के लिए आमंत्रित किया. आयोजन स्थल पर तामसी भोजन को देखकर गोरक्षनाथ ने कहा कि मैं तो भिक्षाटन से जो चावल-दाल मिलता है, वहीं ग्रहण करता हूं. इस पर ज्वाला देवी ने कहा कि मैं गरम करने के लिए पानी चढ़ाती हूं. आप भिक्षाटन कर पकाने के लिए चावल-दाल ले आइए.

गुरु गोरक्षनाथ यहां से भिक्षाटन करते हुए हिमालय की तलहटी में स्थित गोरखपुर आ गए. यहां उन्होंने राप्ती और रोहिणी नदी के संगम पर एक मनोरम जगह देखकर अपना अक्षय भिक्षापात्र वहां रखा और साधना में लीन हो गए. बाद में वहीं पर उन्होंने मठ और मंदिर की स्थापना की. तबसे यह पूरे देश खासकर उत्तर भारत के लाखों-करोड़ों के लोगों का श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.

मकर संक्रांति से एक माह तक लगने वाले खिचड़ी मेले में यह श्रद्धा दिखती भी है. खिचड़ी में जो अन्न मिलता है, वह मंदिर के साधु-संतों के अलावा जो भी भोजन के समय आता है, पाता है. मंदिर परिसर स्थित संस्कृत महाविद्यालय के छात्रों के अलावा अन्य जरूरतमंदों को भी यह दिया जाता है. अन्न का यह सम्मान और सदुपयोग भी खुद में जनकल्याण का एक नमूना है. जनहित में मंदिर के कपाट कर गोरखपीठ ने फिर एक बार इतिहास रचा है.

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