सुप्रीम कोर्ट का कफील खान मामले में दखल देने से इनकार
पीठ ने कहा, 'हम फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन इससे चल रहे मामले प्रभावित नहीं होंगे.'
नई दिल्ली/लखनऊ:
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत डॉ. कफील खान को रिहा करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्य की खंडपीठ ने कहा कि अदालत को इलाहाबाद के फैसले पर हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के 1 सितंबर के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, 'यह आदमी तीन महीने से बाहर है, और कुछ नहीं हुआ है.' शीर्ष अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि जो लंबित आपराधिक मामले हैं वे अपने दम पर चलते रहेंगे. पीठ ने कहा, 'हम फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन इससे चल रहे मामले प्रभावित नहीं होंगे.'
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट की टिप्पणियों के बाद कफील खान आपराधिक मामलों में दोषमुक्त हो जाएंगे. खंडपीठ ने इस पर कहा कि आपराधिक मामलों का फैसला सबूतों में दम रहने के आधार पर ही किया जाएगा. हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत खान की गिरफ्तारी को रद्द कर दिया था और उनकी तत्काल रिहाई के निर्देश दिए थे, यह कहते हुए कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दिए गए उनके भाषण से नफरत या हिंसा को बढ़ावा नहीं मिलता, बल्कि इससे राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है.
हाईकोर्ट ने कफील खान की मां नुजहत परवीन की याचिका स्वीकार करते हुए कहा था कि खान को हिरासत में लेने का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का फैसला गलत था, क्योंकि मजिस्ट्रेट ने खान के भाषण का गलत मतलब निकाला और उनके असली मकसद को नजरअंदाज कर दिया. खान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे जब गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी के चलते कई बच्चों की मौत हो गई थी.
खान को जिंदगी बचाने वाले डॉक्टर माना गया, क्योंकि उन्होंने आनन-फानन में कई सिलिंडरों की व्यवस्था की थी, लेकिन बाद में उन्हें अधिकारियों की कार्रवाई का सामना करना पड़ा. खान को नौ अन्य डॉक्टरों के साथ बाद में जमानत पर रिहा किया गया था.
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