काशी में आज भी प्रकट होते हैं भगवान श्री राम, होता है अनोखा भरत मिलाप
वाराणसी में रावण दहन के ठीक दुसरे दिन प्रभु श्री राम और भाई भरत आज भी धरती पर विराजते है, यही नहीं काशी में भरत मिलाप का उत्सव काफी धूम धाम से मनाया जाता है.
नई दिल्ली :
वाराणसी में रावण दहन के ठीक दुसरे दिन प्रभु श्री राम और भाई भरत आज भी धरती पर विराजते है, यही नहीं काशी में भरत मिलाप का उत्सव काफी धूम धाम से मनाया जाता है. काशी में इस पर्व का आयोजन कई अलग- अलग स्थानों पर होता है, लेकिन चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए लाखों की भीड़ शहर के नाटी इमली के मैदान में जुटती है. 475 वर्षों पहले तुलसीदास जी के समकालीन संत मेधा भगत द्वारा वृद्धावस्था में इस रामलीला की शुरुआत की गई थी. असत्य पर सत्य की जीत के पर्व दशहरा के दुसरे दिन एकादशी को नाटी इमली के मैदान में भरत मिलाप का आयोजन परंपरागत रूप से हुआ. सैकड़ो वर्ष पुराने इस भरत मिलाप के पीछे मान्यता है कि खुद प्रभु राम यहाँ भक्तो को दर्शन देते हैं.
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धर्म की नगरी काशी में एक नहीं बल्कि कई धार्मिक आयोजन होते हैं. जिसमें लाखो श्रद्धालुओ और आस्थवानो की जुटी भीड़ उसे लक्खी मेला का स्वरुप दे देती है. ऐसी ही 475 वर्ष पुरानी लक्खी मेला नाटी इमली का भारत मिलाप है. जिसके पीछे मान्यता है कि खुद प्रभु राम प्रकट होकर भक्तो को दर्शन देते हैं. इस रामलीला-भरत मिलाप की शुरुआत तुलसीदास के समकालीन रहे मेधा भगत जी ने की थी. जिसके पीछे कहानी है कि हर वर्ष राम प्रीत में मेधा भगत अयोध्या रामलीला देखने जाया करते थें, लेकिन वृद्धावस्था में जब उनका शारीर जवाब देने लगा तो प्रभु राम द्वारा स्वपन में दी गई प्रेरणा से मेधा भगत जी ने रामलीला शुरू की और प्रभु राम ने उनको आशीर्वाद भी दिया था.
इमली के भरत मिलाप के दौरान मै खुद प्रकट होकर दर्शन दूंगा. तभी से इस भरत मिलाप की परम्परा 475 वर्षों से निभाई चली जा रही है. जिसमे शरीक होने लाखो की भीड़ के अलावा खुद काशी नरेश महाराज भी आते है और प्रभु से आशीर्वाद लेते हैं. इस प्राचीन भरत मिलाप में काशी के यादव बंधुओ की महती भूमिका होती है जो भगवान-राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के विमान को अपने कंधो पर कई पीढियों से उठाते चले आ रहें हैं. मेधा भगत जी ने खुद इस लीला में भाग लिया और उसके बाद उन्होंने प्राण त्याग दिये.
शाम को लगभग जब अस्ताचल गामी सूर्य की किरणे भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं. तब लगभग पांच मिनट के लिए माहौल थम सा जाता है. एक तरफ भरत और शत्रुघ्न अपने भाईयों के स्वागत के लिए जमीन पर लेट जाते है तो दूसरी तरफ राम और लक्ष्मण वनवास ख़त्म करके उनकी और दौड़ पड़ते हैं. चारो भाईयों के मिलन के बाद जय जयकार शुरू हो जाती है. इस 5 मीनट के रामलीला के भरत मिलाप के मंचन के दृश्य को अपने नयनों के जरिये यादों में संजोनों और प्रभु के आशीर्वाद के लिए कई पीढियों से श्रद्धालु गवाह बनते चले आ रहें हैं.
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