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श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद: मथुरा कोर्ट में आज फिर होगी सुनवाई, जानें पूरा मामला

याचिकाकर्ताओं ने विवादित ढांचे की खुदाई कराकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से जांच की मांग की है. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि इस मामले में जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, तब तक विवादित ढांचे की देखभाल के लिए रिसीवर नियुक्त किया जाए.

Updated on: 01 Apr 2021, 11:51 AM

highlights

  • श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर जारी विवाद पर आज फिर होगी सुनवाई
  • मथुरा डिस्ट्रिक्ट सिविल कोर्ट में चल रहा है मामला

मथुरा:

उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर जारी विवाद पर गुरुवार को फिर सुनवाई होगी. बता दें कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में बने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए पिछले साल मथुरा डिस्ट्रिक्ट सिविल कोर्ट में पिछले साल याचिका डाली गई थी. इस पूरे मामले में मथुरा कोर्ट ठाकुर केशव देव जी महाराज और इंतजामियां कमेटी के बीच इस विवाद पर सुनवाई करेगा. याचिकाकर्ताओं ने विवादित ढांचे की खुदाई कराकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से जांच की मांग की है. इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता ने मांग की है कि इस मामले में जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, तब तक विवादित ढांचे की देखभाल के लिए रिसीवर नियुक्त किया जाए. उन्होंने अपनी याचिका में शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी पर सबूतों को मिटाने के भी आरोप लगाए हैं. कोर्ट को सबूत मिटाने को लेकर लगाए गए आरोपों पर भी सुनवाई करनी है.

याचिका में क्या कहा गया है?
भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्म स्थान कंस का कारागार था. कंस का कारागार (श्रीकृष्ण जन्मस्थान) ईदगाह के नीचे है. भगवान श्री कृष्ण की भूमि सभी हिंदू भक्तों के लिये पवित्र है. विवादित जमीन को लेकर 1968 में हुआ समझौता गलत था. कटरा केशवदेव की पूरी 13.37 एकड़ जमीन हिंदुओं की थी.

क्या है 1968 समझौता?
1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा. इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था. कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं. इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें (मुस्लिम पक्ष को) उसके बदले पास की जगह दे दी गई.

श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर धार्मिक अतिक्रमण के खिलाफ केस को लेकर सबसे बड़ी रुकावट Place of worship Act 1991 भी है. वर्ष 1991 में नरसिम्हा राव सरकार में पास हुए Place of worship Act 1991 में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसे बदला नहीं जा सकता. यानी 15 अगस्त 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल पर जिस संप्रदाय का अधिकार था, आगे भी उसी का रहेगा. इस एक्ट से अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि को अलग रखा गया था.

मुस्लिम शासकों ने मंदिर तोड़कर सोना लूटा
मान्यता है कि श्रीकृष्ण का जहां जन्म हुआ था. उसी जगह पर उनके प्रपौत्र बज्रनाभ ने श्रीकृष्ण को कुलदेवता मानते हुए मंदिर बनवाया. सदियों बाद महान सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने वहां भव्य मंदिर बनवाया. उस मंदिर को मुस्लिम लुटेरे महमूद गजनवी ने साल 1017 में आक्रमण करके तोड़ा और मंदिर में मौजूद कई टन सोना ले गया. इसके बाद साल 1150 में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में एक भव्य मंदिर बनवाया गया. इस मंदिर को 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया. इसके 125 साल बाद जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने उसी जगह श्रीकृष्ण के भव्य मंदिर का निर्माण कराया. श्रीकृष्ण मंदिर की भव्यता से बुरी तरह चिढ़े औरंगजेब ने 1669 में मंदिर तुड़वा दिया और मंदिर के एक हिस्से के ऊपर ही ईदगाह का निर्माण करा दिया.