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'कौमी एकता दल' की एंट्री से अखिलेश के एग्जिट तक, 10 प्वाइंट्स में समझें समाजवादी पार्टी की लड़ाई

10 प्वाइंट्स में समझें समाजवादी पार्टी की अंदरुनी लड़ाई को।

Updated on: 31 Dec 2016, 09:03 AM

highlights

  • समाजवादी पार्टी से मुलायम ने मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव को बाहर निकाला
  • कौमी एकता दल के सपा में विलय के बाद शुरू हुई थी लड़ाई
  • अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कदम पर सब की नजर

नई दिल्ली:

भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक पिता ने अपने मुख्यमंत्री बेटे को न सिर्फ पार्टी से निकाला है। बल्कि उसके राजनीतिक भविष्य पर भी ग्रहण लगाने की कोशिश की है। बात हो रही है देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की जहां शुक्रवार को समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव और भाई रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया।

मुलायम सिंह यादव के इस फैसले के बाद रामगोपाल यादव ने कहा कि पार्टी प्रमुख को संविधान नहीं मालूम है और उनके जवाब का इंतजार नहीं किया गया। दरअसल शुक्रवार को मुलायम ने जिस 'कठोर' फैसले पर अपनी मुहर लगाई इसके पीछे लंबी लड़ाई चली है। लड़ाई में आमने-सामने थे शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव।

10 प्वाइंट में समाजवादी पार्टी की अंदरुनी लड़ाई

1. जब 2012 में समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो मुलायम सिंह यादव के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि वह मुख्यमंत्री का पद किसे देंगे। अपने बेटे अखिलेश यादव को या भाई शिवपाल यादव को। तब मुलायम ने शिवपाल को नजरअंदाज कर बेटे को राज्य की कमान दी। उस समय शिवपाल मायूस तो जरूर हुए लेकिन बड़े भाई के फैसले पर आपत्ति नहीं जता सके। अखिलेश ने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने चाचा शिवपाल को कई मलाईदार मंत्रालय दिए।

2. 2014 लोकसभा चुनाव के परिणाम तक पार्टी में लगभग सबकुछ ठीकठाक चलता रहा। लेकिन लोकसभा की 80 सीटों में से सिर्फ 5 सीट मिलने के बाद पार्टी के अंदर खलबली मचनी शुरू हुई। अब सामने था 2017 विधानसभा चुनाव। जिसके लिए पार्टी कमर कस चुकी है। जिसके लिए पार्टी यानि शिवपाल और मुलायम सिंह गठबंधन के पक्ष में थे जबकि अखिलेश इसके खिलाफत करते रहे हैं।

3. इसी साल जून में शिवपाल यादव ने बगैर अखिलेश से पूछे माफिया-डॉन मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल से गठबंधन की घोषणा की। जिसपर अखिलेश ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा, 'सरकार को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है। वो अपने कामों के दम पर चुनाव जीत सकती है।' मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद शिवपाल को गठबंधन तोड़ना पड़ा। विलय में अहम भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से हाथ धोना पड़ा।

4. जुलाई में एक बार फिर अखिलेश-शिवपाल के बीच लड़ाई बढ़ी। तब मुलायम ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, 'चुनाव के बाद पार्टी विधायक तय करेंगे कि सीएम कौन बनेगा।' इसी लड़ाई में शिवपाल ने अखिलेश यादव की ओर इशारा करते हुए कहा 'कुछ लोगों को सत्ता विरासत में मिल जाती है, कुछ की जिंदगी सिर्फ मेहनत करते गुजर जाती है।'

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5. सितंबर महीने में अखिलेश यादव ने शिवपाल के करीबी समझे जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को बर्खास्त कर दिया। सिंघल की बर्खास्तगी से एक दिन पहले शिवपाल के दो मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राज किशोर सिंह को भी बर्खास्त किया था। उनपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। बाद में दोनों मंत्रियों की कैबिनेट में वापसी भी हुई।

6. चाचा-भतीजे की लड़ाई बढ़ती गई। अक्टूबर में अखिलेश ने शिवपाल और समेत उनके करीबी चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। जिसके बाद मुलायम ने हस्तक्षेप की और चारों मंत्रियों की वापसी हुई।

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7. लड़ाई का असर पार्टी की सिल्वर जुब्ली समारोह पर भी दिका। 5 नवंबर को हुए कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शामिल नहीं हुए। इससे पहले वह अपने प्रचार के लिए 3 नवंबर को रथयात्रा पर निकल गए।

8. इस बीच मुलायम सिंह यादव ने बीच का रास्ता निकाला और अखिलेश से पार्टी की जिम्मेवारी छीनकर शिवपाल यादव को प्रदेश में पार्टी की कमान दे दी। जिसके बाद शिवपाल ने अखिलेश के 7 करीबियों को पार्टी से निकाल दिया। सभी पर अनुशासनहीनता का आरोप लगा।

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9. यह लड़ाई चलती रही। अब जब उत्तर प्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है तो समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे की जिम्मवारी को लेकर लड़ाई हो रही है। बुधवार को समाजवादी पार्टी ने 325 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की। जो अखिलेश की सलाह के विपरीत था। अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले मौजूदा मंत्री अरविंद सिंह गोप, राम गोविंद चौधरी, बृजलाल सोनकर और पवन पांडे का टिकट काट दिया गया। वहीं बाहुबली नेता अतीक अहमद को अखिलेश की आपत्ति के बावजूद कानपुर से टिकट दिया गया। अतीक के नाम की सिफारिश शिवपाल यादव ने की थी।

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10. जिसके जवाब में अखिलेश ने गुरुवार को अपने तरफ से 235 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की। देर रात होते होते मुलायम सिंह यादव ने सभी 403 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। इस बीच लखनऊ में मुलायम से शिवपाल यादव और अखिलेश की मुलाकात हुई। लेकिन कोई अपने फैसले से पीछे नहीं हटा और शुक्रवार शाम को मुलायम ने शिवपाल यादव के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर अखिलेश और उनके सलाहकार राम गोपाल को 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब सब की नजर अखिलेश के अगले कदम पर टिकी है। उन्होंने शनिवार को 9 बजे विधायकों की बैठक बुलाई है।