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dudhwa Photograph: (social media)
दुधवा टाइगर रिजर्व में एक दुर्लभ परिवर्तन नजर आ रहा है. कभी घास के खुले मैदानों में घूमने वाले गैंडे अब फिर से अपने पुराने आवास में विचरण करते नजर आने लगे हैं. बाघों और गैंडों को एक ही जंगल में घूमते देखने का दृश्य इस क्षेत्र को उत्तर प्रदेश के एक शीर्ष इको-टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में उभरने में मददगार साबित हो रहा है.
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं
गैंडों के दुधवा में इस तरह से वापसी करने के पीछे सरकार के प्रयासों का सफल होना भी है. सन 1980 के दशक में असम से बांके और राजू को यहां लाया गया, जबकि नेपाल से हेमरानी, नारायणी और राप्ति आईं. आज दुधवा रिजर्व में करीब 52 गैंडें हैं. इनके अतिरिक्त हाल ही में जन्में युवा गैंडे भी हैं, जिन्हें गैंडों की जनगणना में शामिल नहीं किया गया है. 2024 के अंत में औऱ 2025 के शुरुआती महीनों में इन गैंडों को यहां की दलदली जमीन और विशाल घास के मैदानों में छोड़ा गया था. यही गैंडे अब इन मैदानों में पूरी आजादी से अन्य वन्यजीवों के साथ घूमते नजर आते हैं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं.
90 दिनों तक क्वारंटाइन किया जाता है
ऐसा भी नहीं है कि दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों को बस ऐसे ही लाया गया और फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. दरअसल सरकार ने इस बात की पूरी व्यवस्था की है कि इन गैंडों की उचित निगरानी की जाए. जब गैंडे पहली बार दुधवा में आते हैं, तो पहले 90 दिनों तक उन्हें क्वारंटाइन किया जाता है. उसके बाद ही वे अन्य वन्यपशुओं के साथ मिलजुल पाते हैं. बताया जाता है कि पांच पशुओं पर एक महावत नजर रखता है. वह उनकी सेहत और खुराक की वीकली रिपोर्ट तैयार करता है. गैंडों की सुरक्षा व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाता है. इससे यहां इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने में आ रही है.
गैंडे पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र तो होते ही हैं, वे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. जिन घास के मैदानों में गैंडे भोजन करते हैं, वहां घास नरम हो जाती है, जिससे हिरण जैसे अन्य शाकाहारी जीवों को फायदा होता है.