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राजा भैया ने तोड़ दी थी सभी दलों की किलेबंदी, जानें सियासी समीकरण

साल 1995 में राजा भैया ने अमरावती सिंह को अध्यक्ष बनवाकर जिला पंचायत में अपना झंडा गाड़ा तो वर्ष 2000 में उनके प्रत्याशी को मात देने के लिए सभी दल एकजुट हो गए. भाजपा और कांग्रेस भी सपा समर्थित प्रत्याशी को जिताने के लिए पसीना बहाने लगे.

Updated on: 28 Jun 2021, 11:10 PM

highlights

  • राजा भैया ने जिला पंचायत की ओर पहली बार 1995 में रुख किया
  • अमरावती सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया
  • उस समय जिले में जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 42 हुआ करती थी

प्रतापगढ़:

साल 1995 में राजा भैया ने अमरावती सिंह को अध्यक्ष बनवाकर जिला पंचायत में अपना झंडा गाड़ा तो वर्ष 2000 में उनके प्रत्याशी को मात देने के लिए सभी दल एकजुट हो गए. भाजपा और कांग्रेस भी सपा समर्थित प्रत्याशी को जिताने के लिए पसीना बहाने लगे. राजा भैया समर्थित प्रत्याशी के खिलाफ सभी दलों ने मोर्चा बनाया. इनके समर्थन से जीते सदस्यों की संख्या प्रत्याशी को जीत दिलाने के लिए पर्याप्त थी. इसके बाद भी राजा भैया ने विरोधी दलों की एकजुटता को बेधते हुए उनकी किलेबंदी ध्वस्त कर दी. संयुक्त मोर्चा के प्रत्याशी पूर्व विधायक नागेंद्र यादव मुन्ना, राजाभैया समर्थित प्रत्याशी बिंदेश्वरी पटेल से महज 2 मतों से हार गए.

कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने जिला पंचायत की ओर पहली बार 1995 में रुख किया. उन्होंने अमरावती सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा कर कुंडा से दूर जिला मुख्यालय पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया. इसके बाद 2000 के चुनाव में राजा भैया ने बिंदेश्वरी पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया तो सपा, भाजपा और कांग्रेस राजा भैया समर्थित प्रत्याशी के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाकर एकजुट हो गए. उस समय जिले में जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 42 हुआ करती थी.

कांग्रेस के प्रमोद तिवारी, भाजपा के राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह, सपा के सीएन सिंह की एकजुटता राजा भैया समर्थित प्रत्याशी को कड़ी चुनौती देने लगी. उस समय पूर्व मंत्री प्रोफेसर शिवाकांत ओझा भी भाजपा में थे और सपा प्रत्याशी नागेंद्र यादव मुन्ना को जिताने के लिए कमर कसे थे. सदस्यों का आंकड़ा भी विपक्षी मोर्चा के पक्ष में था, लेकिन परिणाम आया तो राजा भैया समर्थित प्रत्याशी बिंदेश्वरी पटेल को 22, संयुक्त मोर्चा समर्थित प्रत्याशी सपा के नागेंद्र यादव मुन्ना को 20 मत मिले.

हालांकि मुन्ना यादव बाद में सपा के विधायक बन गए. उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष का वह चुनाव बखूबी याद है. वह बताते हैं कि उस समय सपा समर्थित जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 13 थी. भाजपा और कांग्रेस को मिलाकर सदस्यों का आंकड़ा 25 पार कर रहा था. इसके बाद भी भितरघात और खरीद-फरोख्त के कारण सभी दलों की एकजुटता कारगर नहीं हो सकी.

वैध मतों में आधे से एक अधिक पर होगी जीत
जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए भले ही 4 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है लेकिन माना जा रहा है कि 29 जून को एक प्रत्याशी अपना नामांकन पत्र वापस ले लेगा. ऐसे में अगर सभी का मतदान वैध रहा तो 3 प्रत्याशी होने की दशा में भी 29 मत पाने वाला प्रत्याशी ही जीत हासिल कर सकेगा. जिला पंचायत सदस्य सभी प्रत्याशियों को गिनती लिखकर प्रथम, द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ वरीयता का मत दे सकेंगे. जिला पंचायत के निर्वाचन अधिकारी अपर जिलाधिकारी शत्रोहन वैश्य ने बताया कि कुल प्राप्त वैध मतों में आधे से एक मत अधिक पाने वाले को ही विजई घोषित किया जाएगा. अगर प्रथम वरीयता के मत में परिणाम नहीं निकलता तब द्वितीय व तृतीय वरीयता के मतों की गिनती की जाएगी.

प्रत्याशियों संग पार्टी नेताओं ने भी तेज किया संपर्क अभियान
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी सहित पार्टी के नेताओं ने भी संपर्क अभियान तेज कर दिया है. जनसत्ता दल लोकतांत्रिक, सपा और भाजपा के लोग सदस्यों के घर घर जाकर उनसे लंबी मंत्रणा कर रहे हैं. हालांकि इस समय कई सदस्य अपने घर पर भी मौजूद नहीं मिल रहे हैं. निर्दलीय जिला पंचायत सदस्यों की सबसे अधिक परिक्रमा हो रही है. तीनों दल के प्रत्याशी और पदाधिकारी निर्दलीय सदस्यों को अपने पक्ष में लाने की कवायद में जुटे हैं.