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मुस्लिम वोटों को लेकर यूपी में सियासत तेज, अपने पाले में करने के लिए मची होड़

अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक पर कब्ज़ा को लेकर विपक्षी दलों में खींचतान तेज होती दिख रही है. उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक है जिसको लेकर मतदाताओं को लुभाने की सियासत शुरू हो चुकी है.

Updated on: 04 Jun 2021, 03:43 PM

लखनऊ :

अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक पर कब्ज़ा को लेकर विपक्षी दलों में खींचतान तेज होती दिख रही है. उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक है जिसको लेकर मतदाताओं को लुभाने की सियासत शुरू हो चुकी है. लगभग 25 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर करीब 20 फीसदी के आसपास है. उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से करीब 125 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां अल्पसंख्यक वोट ही नतीजों में अहम भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि चुनाव नजदीक आते ही मुस्लिम वोट को अपने पाले में लाने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ सी मच जाती है.

उत्तर प्रदेश सें अगले साल विधानसभा चुनाव होना है. वैसे में अब कांग्रेस सपा,बसपा समेत सभी दलों ने मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने के लिए रणनीतियां बनानी शुरू कर दी है. कांग्रेस ने सूबे के मजबूत मुस्लिम चेहरे सहारनपुर से इमरान मसूद और प्रतापगढ़ से इमरान प्रतापगढ़ी को पार्टी में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी है. इमरान मसूद को दिल्ली का सहप्रभारी और पार्टी में राष्ट्रीय सचिव का पद दिया गया है तो वही इमरान प्रतापगढ़ी को कांग्रेस ने अल्पसंख्यक मोर्चे का चेयरमैन नियुक्त किया है. ज़ाहिर है इन चेहरों को आगे कर कांग्रेस यूपी के अल्पसंख्यक समाज को ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि उस समाज की असली रहनुमा कांग्रेस ही है.

इधर बहुजन समाज पार्टी ने भी पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लालजी वर्मा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को यूपी विधानमंडल दल का नेता नियुक्त किया है. उस तरफ समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने ये बयान देकर सनसनी मचा दी कि शरीयत में छेड़छाड़ की वजह से लोग आपदा का शिकार हो रहे हैं. एसटी हसन के इस बयान को भी मुस्लिम वोटों के पोलराइजेशन से जोड़कर देखा जा रहा है. जून में संभावित ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भी सपा यादव मुस्लिम गठजोड़ के साथ ही आगे बढ़ रही है.

हालांकि इन सबके बीच ओवैसी की पार्टी भी मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने के लिए जी जान से लगी हुई है. वही मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने के लिए विपक्षी दलों में शुरू हुई ज़ोर आज़माइश को लेकर भाजपा को विपक्षी दलों पर तुष्टिकरण को लेकर एक और मौका मिलता दिख रहा है.