(रिपोर्टर - सुशील पांडेय )
वाराणसी की प्रसिद्ध ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. इसमें उसने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से संबंधित मामले में दखल देने की मांग की है. इस याचिका में मस्जिद कमेटी ने उन याचिकाओं को खारिज करने की अपील की है. इन्हें भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय, सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य व्यक्तियों ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर दायर किया था. इन याचिकाओं में इस कानून को चुनौती दी गई है ...जिसे 1991 में संसद ने पारित किया था और जिसका लक्ष्य विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों की स्थिति को संरक्षित करना है.
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ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने अपनी याचिका में क्या कहा
ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी का कहना है कि यह एक्ट पूरी तरह से वैध है और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. मस्जिद कमेटी का यह भी कहना है कि इस एक्ट के तहत किसी भी धार्मिक स्थल की पूजा की स्थिति को किसी भी हालत में बदलने का प्रयास नहीं किया जा सकता और यह कानून भारतीय समाज में धार्मिक सद्भाव बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. कमेटी ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस एक्ट का उद्देश्य न केवल धार्मिक स्थलों की सुरक्षा है,बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए धार्मिक स्थल के इतिहास और स्वरूप को न बदल सके.
कई मुस्लिम संगठन ने दाखिल कर रखी है याचिका
ज्ञानवापी मस्जिद की यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में एक बड़े विवाद का हिस्सा बन गई है. इसमें पहले ही कई मुस्लिम संगठन, जैसे आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत और जमीयत उलेमा हिंद पक्षकार हैं. इन सभी संगठनों ने पहले से ही इस एक्ट को चुनौती दी है.लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी अब खुद को प्रभावित पक्ष के रूप में मानते हुए इस मामले में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहती है.
असहमति और विवादों को शांत किया जा सकता है
यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्ञानवापी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है. यह मस्जिद वाराणसी में स्थित है, जो हिंदू धर्म का पवित्र स्थान काशी का हिस्सा है. इसके आसपास हमेशा से धार्मिक और ऐतिहासिक विवाद चलते आए हैं. ऐसे में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट इस विवाद के समाधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह धार्मिक स्थलों के अस्तित्व और पूजा की स्थिति को संरक्षित करने का प्रावधान करता है. मस्जिद कमेटी के अनुसार प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का पालन करना न केवल धार्मिक सम्मान की रक्षा करता है. बल्कि यह संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की मूल भावना को भी सुनिश्चित करता है. मस्जिद कमेटी का मानना है कि अगर यह कानून प्रभावी रूप से लागू किया जाता है, तो इससे किसी भी प्रकार के असहमति और विवादों को शांत किया जा सकता है, जिससे समाज में धार्मिक ताने-बाने का संरक्षण होगा.
यह मामला अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है. याचिकाएं दाखिल करने वाले नेताओं और संगठनों का कहना है कि यह कानून कुछ विशेष धार्मिक स्थलों पर लागू नहीं होता और इसे फिर से समीक्षा करने की आवश्यकता है. वहीं, मस्जिद कमेटी और अन्य मुस्लिम संगठन इसे संविधान के तहत अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए इसे पूरी तरह से लागू करने की पक्षधर हैं. यह मामला अब न्यायपालिका पर निर्भर है कि वह धार्मिक संवेदनाओं और अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाए रखता है.