logo-image

पंचायत चुनावों में पहली बार मतदान करेंगे वनटांगिया गांव के लोग

वनटांगिया लोग पिछले साल 25 दिसंबर को तब सुर्खियों में आए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुबंध खेती का उदाहरण स्थापित करने के लिए एक एफपीओ 'महाराजगंज सब्जी उत्पादक कंपनी' के निदेशक राम गुलाब के साथ आभासी बातचीत की.

Updated on: 06 Apr 2021, 04:14 PM

highlights

  • 23 वनटांगिया गांवों के निवासी प्रदेश के मौजूदा पंचायत चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे
  • इनमें से 5 गांव गोरखपुर के और महराजगंज जिले के 18 गांव हैं
  • इन 23 वनटांगिया गांवों को योगी आदित्यनाथ सरकार ने 1 जनवरी 2018 को "राजस्व गांव" घोषित किया था

गोरखपुर :

उत्तर प्रदेश के 23 वनटांगिया (आदिवासी समुदाय) गांवों के निवासी प्रदेश के मौजूदा पंचायत चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे. इनमें से 5 गांव गोरखपुर के और महराजगंज जिले के 18 गांव हैं. इन 23 वनटांगिया गांवों को योगी आदित्यनाथ सरकार ने 1 जनवरी 2018 को "राजस्व गांव" घोषित किया था. वनटांगिया आदिवासी समुदाय का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिल में एक विशेष स्थान है, जो इस क्षेत्र में 'टॉफी वाले बाबा' के नाम से प्रसिद्ध हैं. मुख्यमंत्री पिछले कई सालों से वनटांगिया बच्चों के साथ दिवाली मना रहे हैं.
वनटांगिया लोग पिछले साल 25 दिसंबर को तब सुर्खियों में आए
वनटांगिया लोग पिछले साल 25 दिसंबर को तब सुर्खियों में आए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुबंध खेती का उदाहरण स्थापित करने के लिए एक एफपीओ 'महाराजगंज सब्जी उत्पादक कंपनी' के निदेशक राम गुलाब के साथ आभासी बातचीत की. महाराजगंज के वनटांगिया गांवों के किसानों ने गोल्डेन स्वीट टोमैटो (टमाटर) की खरीद के लिए अहमदाबाद की एक कंपनी के साथ करार किया था.

डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय के एक रिसर्च स्कॉलर (शोध शिक्षाविद) संदीप राय ने कहा, "लगभग 99 वर्ष पहले ब्रिटिश सरकार ने जंगलों की सफाई के लिए लोगों का उपयोग करना शुरू किया. इन लोगों को टांगिया किसान कहा जाता था. इन किसानों को जंगल के पेड़ों की पंक्तियों के बीच नौ फुट भूमि पर खेती करने की अनुमति थी. उन्हें अपनी पसंद की फसलें उगाने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि यह वन अधिकारियों द्वारा तय किया गया था, ताकि फसल आसपास के पेड़ों को नुकसान न पहुंचाए और मिट्टी की उर्वरता को खराब न करें."

वनटांगिया अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह से जंगल पर निर्भर थे
उन्होंने कहा, "किसानों के पास जमीन पर कोई मालिकाना अधिकार नहीं था और उनके पास केवल फसल पर अधिकार था. वनटांगिया अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह से जंगल पर निर्भर थे. पिछली सरकारों की लापरवाही के कारण आजादी के 70 साल बाद भी वनटांगिया बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहे."