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पुण्‍यतिथि: अमर शहीद पंडित राम प्रसाद विस्मिल के ये थे अंतिम शब्‍द, जो उन्‍होंने फांसी के फंदे को चूमते वक्‍त कहा था

'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है' गाते गाते फांसी के फंदे का चूमने वाले पंडित राम प्रसाद विस्मिल की आज 91 वीं पुण्यतिथि है

Updated on: 19 Dec 2018, 12:57 PM

गोरखपुर:

'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है' गाते गाते फांसी के फंदे का चूमने वाले पंडित राम प्रसाद विस्मिल की आज 91 वीं पुण्यतिथि है. 19 दिसम्बर 1927 को आजादी के इस दीवाने को गोरखपुर जेल में सवेरे साढ़े 6 बजे फांसी दी गई थी. इसी जेल में विस्मिल ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी. आज बिस्मिल के शहीदी दिवस पर गोरखपुर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है.

ये थे उनके अंतिम शब्‍द

“आई विश डाउनफाल आफ ब्रिटिश इम्‍पायर” यह वो अंतिम शब्‍द हैं जो गोरखपुर के जिला जेल में 91 साल पहले 19 दिसम्‍बर 1927 को क्रान्तिकारी रामप्रसाद विस्मिल ने फांसी के फन्‍दे पर लटकने से पहले कहे थे, विस्मिल को काकोरी काण्‍ड में आरोपी बनाकर अंग्रेजो ने असफाकउल्‍लाह खान, राजेन्‍द्र लहरी, रोशन सिंह के साथ फांसी की सजा सुनाई थी. सन 1897 में शाहजहांपुर में पैदा हुये राम प्रसाद ने देश को आजाद कराने के लिये हिन्दुस्तान रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामा और आजाद और भगत सिंह के साथ मिलकर अनेक ऐसे काम किये जिससे वह अंग्रेजों की नजर में आ गये.

9 अगस्त 1925 को इन लोगों ने काकोरी नामक जगह पर ब्रिटिश हुकूमत के खजाने का लूट लिया जिसमें बाद में जांच होने पर इनको, अशफाक उल्लाह खान, रौशन सिंह और राजेन्द्र लहरी को सामूहिक रुप से फांसी की सजा सुनाई गई. विस्मिल को फांसी के लिये गोरखपुर जेल लाया गया जहां पर 19 दिसम्बर 1927 को सवेरे 6 बजे उनको फांसी पर लटका दिया गया. आजादी के इस जियाले ने इसी जेल में अपने अंतिम दिनों में अपनी आत्‍मकथा के साथ कई किताबें लिखीं थी.

राप्ती नदी पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था

जिस समय बिस्मिल को लखनऊ जेल से गोरखपुर लाया गया उस समय उनके उनपर धारा 121 A, 120B, 396 IPC के तहत राजद्रोह और षणयंत्र रचने के आरोप फांसी की सजा दी गई थी. बिस्मिल 4 माह 10 दिन तक इस जेल के इसी बैरक में रहे. कैदी नम्‍बर 9502 यानी राम प्रसाद बिस्‍मिल जेल में सभी के प्रिय थे और जिस दिन उनको फांसी हुई, पूरा जेल रो रहा था. जिला जेल के जेलर प्रेम सागर शुक्ल ने बताया कि बिस्मिल को फांसी दिए जाने के बाद यहां पर आई हजारों की जनता ने जेल की दीवार को तोड़कर उनके पार्थिव शरीर को जबरन अपने कब्जे में ले लिया और उसे लेकर गोरखपुर के घंटाघर चौराहे पर पहुचे जहाँ लोगों ने अपने देश में बेटे को अंतिम विदाई दी. बिस्मिल के अंतिम संस्कार के वक्त उनके माता पिता गोरखपुर आये थे और राप्ती नदी पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था.

12 सालों से बिस्मिल पार्क में मेले का आयोजन

राम प्रसाद बिस्मिल के नाम पर एक पुस्‍तकालय भी गोरखपुर में चलता है जहां पर लोग आकर उनकी आत्‍मकथा को पढ़ते हैं और उनके संस्‍मरणों को ताजा करते है. उनके जन्‍मदिन पर गोरखपुर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. बिस्मिल को लोगों के दिलों में बनाये रखने के लिए पिछले 12 सालों से बिस्मिल पार्क में मेले का आयोजन किया जाता है. बिस्मिल के चाहने वालो का कहना है कि आज की युवा पीढी इन क्रान्तिकारियों को लगभग भूलने लगी ह और उनके अपने देश के गौरव की याद दिलाने के लिये इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन और उनकी स्‍मृतियों को बचाकर रखा गया है जिससे रामप्रसाद बिस्मिल, असफाकउल्‍लाह खान, राजेन्‍द्र ल‍हरी और रोशन सिंह जैसे देशभक्‍तों को लोग भूलने न पायें.

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मेले के आयोजक बृजेश त्रिपाठी का कहना है कि इस मेले में बच्चों को बिस्मिल के बारे में बताया जाता है और उनके साथ के दुसरे क्रांतिकारियों के आजादी दिलाने में योगदान को भी इन कार्यक्रमों के जरिये बताया जाता है. इस मेले में शामिल होकर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को याद करने वाले वालों का मानना है की आज की युवा पीढ़ी को देश के इन शहीदों के बारे में बताने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होना बहुत जरुरी है क्योंकि आज इनके बारे में ना तो कहीं पढाया जाता है और ना ही कोई बताने वाला है की गोरखपुर से इनका क्या जुड़ाव रहा है.

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गोरखपुर में बिस्मिल की याद को हमेशा बनाये रखने के लिए सरकारी स्तर पर तो कोई खास प्रयास नहीं दीखते पर स्थानीय लोगों ने उनकी यादों को अपने दिलों में संजो रखा है और हर साल बिस्मिल के नाम पर मेला और दूसरे कार्यक्रमों का आयोजन कर यह प्रयास किया जाता है की कम से कम आज पीढ़ी देश के इन शहीदों को भूलने ना पाए. इसके साथ ही अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर अब जिला जेल में बिस्मिल का कमरा और फांसी घर को रेनोवेट कर आम लोगों के लिए खोला जा रहा है, जहां लोग आज़ादी के इस दीवाने को अपनी श्रद्धांजलि दे सकें.