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ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एक वादी ने नाम लिया वापस !

श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी इलाके में धार्मिक स्थल का दर्शन के एक वादी ने नाम लिया वापस ले लिया है.

Updated on: 08 May 2022, 03:15 PM

highlights

  • पांच महिलाओं की याचिका पर कोर्ट कर रहा है सुनवाई
  • कोर्ट के आदेश पर मस्जिद का किया जा रहा है सर्वेक्षण
  • इस मामले पर देशभर में छिड़ा हुआ है घमासान

नई दिल्ली:

श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी इलाके में धार्मिक स्थल का दर्शन के एक वादी ने नाम लिया वापस ले लिया है. दरअसल, वाराणसी के श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी मस्जिद इलाके में धार्मिक स्थल का दर्शन और इसके सर्वेक्षण के लिए जिन पांच महिलाओं रखी सिंह , सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी व रेखा पाठक ने कोर्ट में रिट दाखिल किया था. बताया जा रहा है कि इनमें से पहली रिट दाखिल करने वाली महिला राखी सिंह ने केस से अपना नाम वापस ले रही है. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है रखी सिंह के नाम वापस लेने के बाद बाकी चार महिलाएं केस लड़ती रहेंगी या वे भी अपना नाम वापस लेंगी.

कोर्ट के आदेश पर शुरू हुआ था सर्वेक्षण
गौरतलब है कि इन महिलाओं की याचिका के आधार पर ही वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक के जज रवि कुमार दिवाकर ने बृहस्पतिवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में विवादित परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. इसके साथ ही अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को अपने खर्च पर यह सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी किया था. इसके बाद शुक्रवार को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद में पहले दिन का सर्वे शुक्रवार को किया गया. सर्वे और वीडियोग्राफी का काम का काम आज यानी शनिवार को एक बार फिर दोपहर तीन बजे से शुरू होना था, लेकिन स्थानीय लोगों के भारी विरोध की वजह से सर्वे का काम पूरा नहीं सका.

ओवैसी ने भाजपा पर किया था करारा हमला
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ज्ञानवापी  मस्जिद के सर्वे का काम शुरू होने पर केंद्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. ओवैसी ने कहा है कि भारत सरकार और यूपी सरकार को कोर्ट को बताना चाहिए था कि संसद ने जो पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 पारित किया है. इसमें साफ-साफ कहा गया है कि कोई भी धार्मिक स्थल जो 15 अगस्त 1947 से पहले से अस्तित्व में है, उसकी स्थिति से छेड़छाड़ नहीं किया जाएगा.  इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार यह भी जानती है कि जब बाबरी मस्जिद सिविल टाइटल का फैसला आया था, तब भी 1991 के अधिनियम को संविधान के बुनियादी ढांचे से जोड़ा गया था. इसलिए सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह अदालत को बताए कि वे जो कर रहे हैं, वह गलत है. इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा है कि वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि, नफरत की राजनीति उनको जचता है, इसलिए वे चुप हैं.

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इसके साथ ही ओवैसी ने भाजपा और संघ परिवार पर भी निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि भाजपा को भी यह बताना चाहिए कि क्या वे पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम- 1991 को स्वीकार करते हैं या नहीं. उन्होंने आगे कहा कि दरअसल, यह भाजपा और संघ की चाल है, जो इस मामले को फिर से मुद्दा बनाना चाहते हैं. ओवैसी ने आरोप लगाया है कि वे 90 के दशक वाले नफरत के युग को फिर से जगाने की कोशिश कर रहे हैं.