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यूपी कैबिनेट विस्तार में होगा ओबीसी नेताओं का दबदबा, फॉर्मूला तय

उत्तर प्रदेश में होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार बीजेपी के नेताओं के अलावा सहयोगी दलों के नेताओं को भी जगह दी जा सकती है. इस कड़ी में अपना दल के आशीष पटेल और निषाद पार्टी से डॉ. संजय निषाद का नाम सामने आ रहा है.

Updated on: 21 Aug 2021, 09:44 AM

highlights

  • रक्षाबंधन के बाद हो सकता है यूपी मंत्रिमंडल में विस्तार
  • केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के घर पर हुई बैठक
  • मिल सकता है ओबीसी नेताओं को बढ़ावा

लखनऊ:

उत्तर प्रदेश में होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार बीजेपी के नेताओं के अलावा सहयोगी दलों के नेताओं को भी जगह दी जा सकती है. इस कड़ी में अपना दल के आशीष पटेल और निषाद पार्टी से डॉ. संजय निषाद का नाम सामने आ रहा है. उम्मीद ये है कि इन दोनों नेताओं को उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है. सहयोगी दलों के साथ पिछड़े वर्ग के नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह देकर भाजपा एक तीर से दो निशाना लगाने की तैयारी में है. इन नेताओं के अलावा उत्तर प्रदेश में जातिवादी समीकरण को मजबूत करने के लिए अन्य जातियों के नेताओं को भी जगह दी जा सकती है. मंत्रिमंडल का यह विस्तार रक्षाबंधन के बाद हो सकता है.

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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के घर पर हुई बैठक

इस पर कोई निर्णय आने से पहले गुरुवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर देर रात तक बैठक चली. इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, सीएम योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन महामंत्री सुनील बंसल भी मौजूद रहे और कैबिनेट में जगह पाने वाले नेताओं के नामों पर भी चर्चा हुई. वहां से हरी झंडी मिलने के बाद रक्षाबंधन के बाद किसी भी दिन मंत्रिमंडल विस्तार किया जा सकता है. हालांकि प्रदेश बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व को 24 या 27 अगस्त की तारीख के बारे में सोचने की सलाह दी है.

मिल सकता है ओबीसी नेताओं को बढ़ावा

इस मंत्रिमंडल विस्तार में भी केंद्रीय कैबिनेट की तरह ओबीसी चेहरों को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाएगा. इस दौरान चुनाव से पहले अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को लुभाने के लिए कैबिनेट में कुर्मी, निषाद के अलावा राजभर समुदाय के प्रतिनिधि को मंत्री पद मिल सकते हैं. मालूम हो कि पिछले दिनों केंद्र सरकार के कैबिनेट विस्तार में 27 ओबीसी नेताओं को शामिल किया गया था. केंद्र सरकार का यह कदम यूपी में होने वाले विधानसभा चुनावों में ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए एक दांव माना गया था. बता दें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोटरों की संख्या कुल वोटरों लगभग आधी है.