मुस्लिम के साथ-साथ यादव वोट बैंक भी दरक रहा सपा से

अखिलेश यादव का राजनीति करने का जो नजरिया है उससे नहीं लगता कि दूसरी लाइन की लीडरशिप खड़ी करेंगे. जैसे कि मुलायम सिंह के जमाने में आजम खान और शिवपाल यादव हुआ करते थे.

author-image
Nihar Saxena
New Update
Akhilesh

अखिलेश यादव के सामने है चुनौतियों का पहाड़.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

विधान परिषद के चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी की चुनौतियों को और बढ़ाने वाले हैं. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं. अखिलेश यादव की किचन कैबिनेट के इस चुनाव में बुरी तरीके से परास्त होने से सोशल मीडिया से लेकर तमाम जगहों पर कार्यकर्ता 2024 के लिए नए सिरे से संगठन के ओवरहॉलिंग की जरूरत बता रहे हैं. विधान परिषद चुनाव में भाजपा ने सपा को जिस प्रकार उसके गढ़ में पटखनी दी है, उससे संकेत मिल रहे हैं कि मिशन 2024 की जंग के लिए भाजपा से मोर्चा लेना आसान नहीं होगा. अभी हाल में सपन्न हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने जिन गढ़ों पर भाजपा को घुसने नहीं दिया था, वहां भी विधान परिषद में मुंह की खानी पड़ी. चाहे आजमगढ़ या आगरा, फिरोजाबाद हो, सपा को अपेक्षाकृत कम वोट मिले हैं. सपा की मुस्लिम यादव की रणनीति को इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका उसके सबसे मजबूत गढ़ बस्ती-सिद्धार्थनगर की सीट पर लगा है. अब यादव समाज के भी छिटकने की आशंका बनी हुई है.

Advertisment

पार्टी के एक बड़े नेता ने कहा कि विधान परिषद के चुनाव को हल्के में लिया, इसीलिए हम हारे. जिनके कंधों पर इस चुनाव की जिम्मेंदारी थी, वह कन्नी काटते नजर आए. कई जगह तो उम्मीदवारों ने मतदाता से भी मिलना जरूरी नहीं समझा, वो सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित रहे. अगर पंचायत चुनाव जैसा संघर्ष होता तो इतनी शर्मनाक स्थिति में पार्टी इस चुनाव में नहीं पहुंचती. जिस प्रकार से वरिष्ठ नेताओं ने इस चुनाव से दूरी बनाई वह भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं है. गठबंधन वाले नेता भी उतने सक्रिय नहीं दिखे. अखिलेश यादव का राजनीति करने का जो नजरिया है उससे नहीं लगता कि दूसरी लाइन की लीडरशिप खड़ी करेंगे. जैसे कि मुलायम सिंह के जमाने में आजम खान और शिवपाल यादव हुआ करते थे. उनको भय रहेगा कि उनका पार्टी पर कब्जा बना रहे. अखिलेश यादव की राजनीति में दूसरी लाइन के नेताओं की कमीं हमेशा रहेगी.

सबसे महत्वपूर्ण बात इस चुनाव में यह नजर आयी कि जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के खास थे, उन्हें भी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. इसका भी संदेश गलत जाएगा. हालत ऐसे हैं कि परिषद से नेता प्रतिपक्ष का पद भी छिनने जैसे हालत बन गये हैं. इसके अलावा पार्टी में दूसरी लाइन की लीडरशिप की आवश्यकता है, लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं है. हर व्यक्ति का राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिल पाना मुश्किल है. ऐसे में दूसरी लाइन की मजबूत लीडरशिप विकसित करना बहुत जरूरी है. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आने वाले चुनाव में भाजपा काफी बड़ा स्कोर खड़ा करेगी. सपा आगे भी एमवाई का समीकरण रखेंगे. उससे चुनाव जीत पाना बहुत मुश्किल काम है. हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में जो सपा के वोट बढ़े हैं उसमें अन्य जातियों के वोट भी मिले हैं, लेकिन अखिलेश को अभी काम करना पड़ेगा, संगठन मजबूत करना पड़ेगा.

HIGHLIGHTS

  • 2024 के लिए सपा के समक्ष हैं बड़ी चुनौती
  • मुस्लिम के साथ-साथ यादव वोट बैंक भी नाराज
MY समाजवादी पार्टी वोट बैंक अखिलेश यादव माय Vote Bank Samajwadi Party Akhilesh Yadav
      
Advertisment